गुरुवार, 10 अगस्त 2017

व्यग्ंयपरक चीनी पाखंड पर कविता

Kavi - Kamal Khichar & M. P. Dewasi
  हम नर है ऋषि धरा के तपन प्रचंड हमारा है।
हिमालय के दृग-षिखरों से ऊँचा गौरव चमकता हमारा है।
चीनी लोगों के झुठे-पांखडों ने फिर मातृभुमि को ललकारा है।
सुन ले जिनपिंग अधर मुस्कान से, हमें मां भारती का सहारा है।


किसने कहा हमें तुमसे नहीं लड़ना, हम फिर कुरूक्षेत्र में आयेगें।
सियाचीन के विषालकाय खण्डहरों पर, लहराता तिरंगा फहरायेगें।
भुल हुई थी सन पैसठ में, नेहरू तेरी कुतिल चालों से भुलकर बैठे।
माँ भारती का यषोगान, क्षण भर में धुल चटा बैठे।


हम सीखें वक्त की पैणी धार से, तुझे मेरी धरा हराना है।
जय हिन्द के अलक्षित नारों से, तीर सटीक तरकष में पिरौना है।
शर में ही वासित होती सम्प्रभुता की लहराती युग धारा।
याद रखन जिनपिंग, सच पूछे तो भारत कभी नहीं रण में हारा।


इतिहासकारों की झुठी कलमों ने, भारत को किसी का गुलाम बनाया है।
कभी पराधीन अकबर को भी राणा से महान बताया है।
हम लिखते इतिहास धधकती पौरूष ज्वाला से, कलम चलना रूक जाती है।
बस चमकते तेजस सामथ्र्य के आगे, पत्थरों से बनी राषियां भी हार मान लेती जाती है।

भभक रही ज्वाला तेरे दिलों में, भारत पर कब्जा जमाने की।
याद करले समर हल्दीघाटी का, वह लड़ाई भी किसी जमाने की।
हमारी पोषित मिट्टी का प्रतिफल चीनी माल बाजारों में बिकता है।
पूर्वजों के प्राचीन रेषम मार्ग का, तेरा समर्थ किनारा हिन्द से लगता है।


पाक धुलचट्टी बना रणक्षेत्र में, हमें मिट्टी की सुगन्ध प्यारी है।
पौरूष रथ चलाये विजयगाथा का, हाडी की जीत-मेघा न्यारी है।।
यहां शीष पतझड़ बनते, आजादी की प्रभात वेला में।
फुट पड़ता तिरंगा सावन झरने-सम, चाहे मंडराये छितर काल वेला में।


रग-रग में रक्त बहता, ड्रेगन नाषपथ  तांडव करने में।
व्यग्ंय के निर्जीव बाणों से, सार रणक्षेत्र संघात करने में।
कभी नहीं हारे, कभी नहीं रूके, जिनपिंग की कुटिल नीति से।
कभी नहीं हासिल कर पायेगा, गौरव ज्ञान का, तु हारा छल-धीति से।


हम महाभारत का पाठ पढते, सूरज की रंजक किरणों से।
उठाया हाथ मातृभुमि पर निचोड़ कर रखेगें तेरी लाष तीखें शरों से।
हम डरते नहीं, तेरी आँखमिचैली नंगी चालों से।
डरते केवल हम है पुरखों की आदर्ष पगडंडी से।


हम समर्थ है मानवता के गुण से, तुझे ये गुण त्याज्य है।
हम भाजक है सभ्यता है, तु दुर्गुणों का भाज्य है।
संसाधनों से पूर्ण है भारत, चीन जन्मान्तर याचक है।
हम शांति के सागर है तु विषधर ग्रंथिया पोषक है।


इस सदी के नायक है हम, जगत झुठा पाखंड है तेरा।
स्वतंत्रता के इन्द्ररथ पर, वृद्धिषील रहे देष मेरा।
नमन करते हम उन वीरों को जिसने हमें कौषलवान बनाया।
ब्राह्मड के कोने-कोने में, मां भारती का आँचल लहराया।


हम गौरव है हम सौरभ है, चीन तुझे रण में हरायेगें।
न मरा तु तलवार से, एटमबम से उड़ायेगें।
मैं भारत मां का प्यारा, माटी का गुणगान करता हूँ।
आबाद रहे सम्प्रभु राष्ट्र, कलम का जादू बिखेरता हूँ।

कवि - कमल खीचड़, लालजी की डुंगरी, +91 7073247475
प्रेषक - महेन्द्र पी देवासी, जालेरा कलां, +91 9610969896
 
 



शुक्रवार, 26 मई 2017

S.R. Dewasi with Me
।। हमारे घर एक नन्हा सा फरिश्ता आ गया है ।।
💐
प्रिय बंधुओ ,
आज मैं अपनी ख़ुशी आपसे बाँटना चाहता हूँ.। बहुत दिनों के बाद हमारे घर में एक नए मेहमान का आगमन हुआ है।
मेरे कुल के नए सदस्य को आपके आशीर्वाद की आवश्यकता है, आपके आशीर्वाद से ही उसके सुखी और निष्कंटक जीवन का रास्ता और प्रशस्त होगा।
मेरे प्यारे बड़े भाई सांवलाराम जी देवासी को प्रथम पुत्र रत्न प्राप्ति उपरांत पिता बनने पर
बहुत-बहुत बधाई एवं आज शुक्रवार का दिन इनके जीवन मे यादगार हो गया। 
भैया S. R. Dewasi को समर्पित
फ़लक के तारों को देख जागती थी तमन्ना 
 कोई एक सितारा हमारे आँगन में भी उतरे।
उतर आया है पूरा चाँद हमारी बगिया में 
और रोशन हो गया है हमारा आँगन उसकी चांदनी से।।
..... महेन्द्र पी देवासी

रविवार, 16 अप्रैल 2017

मेरे प्यारे बन्धुओं,
परमपिता परमेष्वर की कृपा से मेरे छोटे भाई मनीष देवासी पुत्र श्री प्रभुरामजी आल, जालेरा कलां का विवाह विक्रम संवत् 2074 वैषाख सुद 2 शुक्रवार दिनांक 28.04.2017 की पावन बेला पर होना सुनिष्चित हुआ है, इस मांगलिक बेला पर आप सहपरिवार वर-वधु को शुभाषिष प्रदान कर हमें अनुग्रहित करें। वहीं आषीर्वाद समारोह एवं प्रीतिभोज का आयोजन शुक्रवार दिनांक 05.05.2017 को रखा है, कृपया जरूर पधारें।
निमंत्रक:- महेन्द्र प्रभुराम देवासी, 9610969896

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

 मेरा बचपन 


बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥

चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?

ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥

किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥

रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे॥

मैं रोया, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया।
झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया॥

वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं मतवाला बड़ा हुआ।
लुटा हुआ, कुछ ठगा हुआ-सा दौड़ द्वार पर खड़ा हुआ॥

मिला, खोजता था जिसको हे बचपन! ठगा दिया तूने।
अरे! जवानी के फंदे में मुझको फँसा दिया तूने॥

किंतु यहाँ झंझट है भारी युद्ध-क्षेत्र संसार बना।
चिंता के चक्कर में पड़कर जीवन भी है भार बना॥

आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शांति।
व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति॥

वह भोली-सी मधुर सरलता वह प्यारा जीवन निष्पाप।
क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का संताप?

✍........महेन्द्र पी. आल, 9610969896

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

मातृ-पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ

हिंदू धर्म में माता को भगवान का रूप माना जाता है। एक शिशु जो कुछ भी सीखता है सबसे पव्हले अपने माता पिता से सीखता है। ना सिर्फ हिन्दू धर्म में बल्कि विश्व के हर क्षेत्र हर समाज और हर राज्य में माता पिता को सम्मान दिया जाता है। 
हिन्दू परिवारों में यह आम बात है कि बच्चे अपने माता पिता के पैरों को छूकर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। कुछ बच्चे तो अपने माता पिता के पैर हर दिन सवेरे छूकर आशीर्वाद लेते हैं ऐसा करना भी चाहिए।
हिन्दू धर्म में माता पिता की पूजा रिवाजों का एक हिस्सा है। माँ को बच्चों का पहला गुरु माना जाता है और पिता को दूसरा माना जाता है।
                      इसीलिए तो कहा जाता है –  माताः पिताः गुरू दैवं 
 यह संस्कृत का एक प्रसिद्ध हिन्दू बोल हैं जिसमें माता पिता को शिक्षक का दर्ज़ा बताया गया है। यह वाक्य वेदों और पुराणों से लिया गया है जिसमें माता पिता को सम्मान दिया गया है।
माता पिता हमारा ख्याल रखते है बचपन से लेकर बड़े होने तक। बिना कोई आस के वो हमें पढ़ाते है, लिखाते हैं और साथ ही दिन रात हमारी चिंता करते हैं। हमारा कर्तव्य होता है कि हम अपने माता पिता का सम्मान करें और साथ ही उनका ख्याल रखें।
उनका भी एक ऐसा समय ता है जब उन्हें हमारी जरूरत होती है वो है उनके बुढ़ापे के समय। ऐसे समय में हमें उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
इस जीवन में माता पिता से बढ़ कर कोई नहीं। जियो तो माता पिता के लिए, कुछ बड़ा बनो तो माता पिता के सम्मान के लिए।
जिसने की मां बाप की सेवा तो उसका बेड़ा पार है।
अरे जिसने दुःखाई आत्मा, वो तो डुबता मझधार है।
अर मात-पिता-परमात्मा नहीं मिलते दुजी बार ह।।

इण दुनिया में मां - बाप भगवान केविजे।

इसी के साथ मेरी तरफ से आप सभी बन्धुओं को मातृ-पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

✍........महेन्द्र आल  9610969896, मनीष आल 8696445280

 

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

बच्चो के लिए जरूरी हैं अच्छे संस्कार

               बन्धुओं ये सन्देष पढने मे भले ही आपका ध्यान आकर्षित न कर पाये, मगर इस सन्देष पर गौर किया जाये तो बहुत कुछ समझने एवं परखने लायक है।
                  अपने समाज में आज भी खुलकर बच्चों को आगे आने को मौका नहीं दिया जाता है, इसी कारण आज भी अपना समाज अन्य समाज से थोड़ा पिछड़ रहा है, इसलिए हमारा मानना है कि आप अपने बच्चों को इस माहौल से बाहर लाए एवं उनकों अपने अन्दर छीपी प्रतिभा को निखारने दें। खास बात यह है कि लड़का-लड़की में भेद न समझकर दोनों को एक जैसा माहौल दें।
                बच्चो की परवरिश में माता-पिता की भूमिका उस किसान की तरह होती है जो बीज के फलने-फूलने के लिए सही माहौल तैयार करता है, उसकी खाद पानी की जरूरतों को पूरा करता है। पेरेंट्स यह तो चाहते हैं कि उनका लाडला-लाडली अच्छे इंसान बने, लेकिन यह भूल जाते हैं कि इसकी नींव उन्हें ही रखनी है अपने परवरिश के तारीके से। अगर आप भी अपने बच्चो में अच्छे संस्कार व मूल्य डालना चाहे हैं, तो उसे तनावमुक्त व सकारात्मक माहौल दें, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे किसी बंधन में बंधने के बजाय अपने तरीके से आगे बढने दें। बच्चो को आत्मनिर्भर बनाये, ताकि बडा होकर वो अकेला ही दुनिया का सामना कर सकें, उसे आपका हाथ थामने की जरूरत ना पडे, लेकिन यह बातें कहने में जितनी आसान लगती हैं इन पर अमल करना उतना ही मुश्किल है, चलिए हम आपको बताते हैं किस तरह आप बच्चो की परवरिश के मुश्किल काम को आसान बना सकते हैं?
प्यार से समझाएं - बच्चो के नखारे दिखाने या किसी चीज के लिए जिद करने पर आमतौर पर माता-पिता डांटते-फटकारते हैं, लेकिन इसका बच्चो पर उल्टा ही असर होता है। आप जोर से चिल्लाते हैं, तो बच्चा भी तेज आवाज में रोने व चिखने चिल्लने लगता है। ऐसे में आपका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है, लेकिन इस स्थिति में गुस्से से काम बिगड सकता है। अतरू शांत दिमाग से बच्चों को समझाने की कोशिश की वो जो कर रहा है वो गलत है।
कहें ना - बच्चो से प्यार करने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप उसकी हर गैरजरूरी मांगें पूरी करें। यदि आप चाहते हैं कि आगे चलकर आपका बच्चा अनुशाशित बने तो अभी से उसकी गलत मांगों को मानना छोड दें।
बच्चो की खूबियों को पहचानें - हर बच्चा अपने आप में अलग और अनोखा होता है। हो सकता है, आपके पडोसी का बच्चा पढाई-लिखाई में अव्वल हो और आपका बच्चा खेलकूद में। ऐसे में कम नंबर लाने पर उसकी तुलना दूसरे बच्चो से करके उसका आत्मविश्वास कमजोर ना करें, बल्कि स्पोट्र्स में मैडल जीत कर लाने पर उसकी प्रशंसा करें और पढाई में भी ध्यान देने के लिए कहें।
मर्जी से लेने दें फैसला - माना बच्चो को सही-गलत का फर्क समझाना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप उसे अपनी मर्जी से कोई फैसला ना लेने दें। ऐसा करके आप उसकी निर्णय की क्षमता को कमजोर कर रहे हैं। यदि आप चाहते हैं कि भविष्य में आपका बच्चा अपने फैसले खुद लेने में सक्षम बने, तो अभी से कुछ छोटे-मोटे फैसले उसे खुद लेने दें।
खुद में लाए बदलाव - यदि आप अपने बच्चो को अच्छे संस्कार देना चाहते हैं तो पहले अपनी बुरी आदतों को बदलें, क्योंकि बच्चा वही करता है जो अपने आसपास देखता है, यदि वो अपने माता-पिता को झगडते देखता है उसका व्यवहार भी झगडालु और नकारात्मक हो जाता हैं। इसलिए जरूरी है कि आप अपनी बुरी आदतों को त्याग दें।
सकारात्मक तरीके से बात करें - माता-पिता जो भी कहते हैं उसका बच्चो पर गहरा असर होता है। अतरू अपने बच्चों से कुछ भी कहते समय इस बात का खास ध्यान रखें कि आपकी बातों का उस पर सकारात्मक असर हो।
             बन्धुओं में हम इस सन्देश के जरिये बस हम आपको इतना ही कहना चाहते है कि अपने समाज के भविष्य (बच्चों) को सक्षम बनाने के लिए पढाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी भाग लेने के लिए प्रेरित करें और अगर आप सक्षम है तो अपने आस-पास के समाज बंधओं को भी अच्छी सलाह देकर अपने समाज का नवनिर्माण जरूर करें।

संकलनकर्ता - जेताराम खोभला 98673 25011
प्रकाषक  -  महेन्द्र आल 9610969896
Jeta Ram Khobhala      Mahendra Aal

-: आपणों देवासी समाज :-

समाज की परिभाषा है बन्‍धु ही समाज का सच्‍चा निर्माता, सतम्‍भ एवं अभिन्‍न अंग है, बन्‍धु, समाज का सूक्ष्‍म स्‍वरूप और समाज, बन्‍धु का विशाल स्‍वरूप है, अत: बन्‍धु और समाज एक-दूसरे के पूरक तथा विशेष महात्‍वाकांक्षी है।

             समाज अच्छा हो तो चरित्र अच्छा होता है, हमें सामाजिक होना चाहिए, समाज ने हमे बहुत कुछ दिया ,  ऐसी बहुत सी बाते बातें हम प्रायः सुनते ही रहते हैं, हम ऐसा क्यों नहीं सुनते हैं की 'हमने समाज को कुछ दिया या हमने अपने  समाज मे  कुछ अच्छा किया,  इसका कहीं न कहीं कारण यह है की हम समाज की परिभाषा ही नहीं जानते, हमें अछे और बुरे समाज का ज्ञान ही नहीं है,  हम यह जानते हैं की समाज कुछ होता है लेकिन हम यह नहीं जानते की यह हमारे जीवन, हमारे चरित्र और फिर हमारे देश पर कैसे और क्या प्रभाव डालता है,  वैसे तो हममे  और आपमे बहुत सी परिभाषाएं ,हम किसी भी परिभाषा पर मनन करते हैं,  और अगर करते हैं तो क्या हम उसे अपने जीवन में उतारते हैं,  हम अक्सर इसे दूसरों पर थोप देते हैं, और कहते हैं कि क्या ये सिर्फ मेरी जिम्मेदारी है, या मैं अकेले क्या कर लूँगा, और या मैं ही अकेले क्यों करूँ,  जबकि एक अकेले भी बहुत कुछ कर सकता है हम सब पहले एक मनुष्य हैं फिर बाद मे और कुछ, हमे अपने समाज के अन्य लोगों के लिए भी कुछ सोचे, उनके लिए कुछ अवश्य करें, नही तो हम मनुष्य कहलाने के हक दार नही है, एक समाज का निर्माण मनुष्यों से होता है,अगर मनुष्यों का चरित्र, व्यवहार, रहन-सहन का स्तर ऊंचा होगा तो हम उस समाज को एक अच्छा और सशक्त समाज कह सकते हैं ,प्रत्येक समाज का एक अपना परिचय अवश्य होता है, जैसा समाज होगा उसका वैसा ही उसका परिचय होने के साथ-साथ उस समाज के व्यक्ति का व्यवहार करने का तरिका होगा, यह एक अलग बात है कि हर समाज मे कुछ अच्छे और कुछ बुरे लोग होते हैं; यह तो हमारे ऊपर निभर करता है कि हम उनमे से क्या है।

                      कितने मतलबी है न हम इंसान, किसी की परेशानी किसी के दुःख से हमे क्या लेना देना, हमको मतलब है तो सिर्फ अपने आप से और कभी-कभी अपने परिवार से भी... पर आज हम अवश्य यह नहीं कह सकते की हमको अपने परिवार की भी उतनी ही चिंता है जितनी अपनी, क्यों, क्यूंकि हम खुद ही नहीं जानते हम क्या कर रहे हैं क्यों कर रहे हैं किसके लिए कर रहे हैं ... जिस समाज में हम रह रहे है उस समाज में और भी लोग है जो अलग-अलग स्थिति में रह रहे है, पर हम यकीनन यह कह सकते हैं कि भाई जो हम कर रहे हैं अपने लिए कर रहे हैं और कयी लोगों का कहना तो यह है पहले हम अपने लिए तो कर ले, अपने परिवार के लिए तो कर ले फिर दूसरे के लिए सोच लेंगे, यह कह कर सब कन्नी काट जाते है, जिस स्थान पर जल रहता है, हंस वही रहते हैं, हंस उस स्थान को तुरंत ही छोड़ देते हैं जहां पानी नहीं होता है, हमें हंसों के समान स्वभाव वाला नहीं होना चाहिए।
                       आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें कभी भी अपने मित्रों और रिश्तेदारों का साथ नहीं छोडऩा चाहिए, जिस प्रकार हंस सूखे तालाब को तुरंत छोड़ देते हैं, इंसान का स्वभाव वैसा नहीं होना चाहिए, यदि तालाब में पानी न हो तो हंस उस स्थान को भी तुरंत छोड़ देते हैं जहां वे वर्षों से रह रहे हैं, बारिश से तालाब में जल भरने के बाद हंस वापस उस स्थान पर आ जाते हैं, हमें इस प्रकार का स्वभाव नहीं रखना चाहिए, हमें मित्रों और रिश्तेदारों का सुख-दुख, हर परिस्थिति में साथ देना चाहिए, एक बार जिससे संबंध बनाए उससे हमेशा निभाना चाहिए, हंस के समान स्वार्थी स्वभाव नहीं होना चाहिए।

              हम सभ्य और विकसित होने का दावा तो करते हैं मगर किसी के दुख या परेशानी में शामिल होने के लिये हमारे पास समय नहीं है, हम आज जिस आधुनिक समाज में रह रहे हैं वह हमें अपने अधिकारों के बारे में तो हमें बताता है मगर हमें अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक नहीं करता जैसे कि हमारे पूर्वजों ने जो पेड़ लगाये थे उन पेड़ों से हमें शुद्ध और ताजी हवा मिलती है मीठे फल मिलते हैं और ठंडी छांव मिलती है, हम लोग अपने पूर्वजों के लगाये हुये पेड़ तो अपनी जरूरतों के लिये काट देते हैं मगर अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये पेड़ नहीं लगाते जिसकी वजह से आने वाली पीढि़यों को शुद्ध और ताजी हवा मीठे फल और ठंडी छांव कैसे मिल पायेगी इसके बारे में हम नहीं सोचते, आज हमें जरूरत है ऐसी पढ़ाई की जो हमें अपने अधिकारों के बारे में तो पढ़ाये ही और साथ ही हमे अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक भी बनाये जिससे हम पढ़ें-लिखें और साथ में एक अच्छे इंसान भी बन सकें।

               यह हमारा समाज है कि जो हमारे लिए आगे बढने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है, अगर समाज का डर न हो तो इंसान इंसान नहीं रह सकता, हम तो खुद कैसे भी अपना जीवन बिता लेंगे, फिर जिंदगी के दरिया में कहीं न कहीं किनारे पर लग कर अपना जीवन व्यतीत कर ही लेंगे, अब क्योंकि हम इस समाज के महत्वपूर्ण अंश है, इसलिए हम हर पल समाज के आगोश में रहते है, समाज की बंदिशों का डर रहता है कि हम किसी भी काम को करने से पहले बहुत बार सोचने को मजबूर हो जाते है, अगर हमारी वजह से कोई गलत काम हो गया तो, और यही छोटी-छोटी बातें हमको कुछ सकारात्मक व सार्थक करने के लिए प्रेरित करती है बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक के लंबे सफर में सबसे बेशकीमती युवावस्था का समय हमारी जिंदगी का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है, और इसी पडाव पर हमको बचपन की सुनहरों यादों के साथ सपनों को साकार करने प्रयास करना चाहिए, ताकि हम वृद्धावस्था में अपने समाज में गर्व से कह सके कि देखो और समझो हमने जिंदगी के दरिया में मजबूत व दृढ इच्छा-शक्ति के बल पर तैर कर अपने लिए वह मुकाम हासिल किए है, जो कामयाबी के शिखर बन गए, अगर हमने युवावस्था में समाज की परवाह नहीं की, तो ऐसा हो सकता है कि वृद्धावस्था में समाज हमारा साथ छोड दे और हम अकेले रह जाए, जिंदगी के आखिरी मोड पर, इसलिए जरूरी हो जाता है कि हमको अपना कल को संवारने के लिए आज समाज को सम्मान देकर और उससे प्रेरणा लेते हुए आगे बढने की कोशिश की जाए।

                हमारा समाज तो हम सब के लिए एक अच्‍छी और साफ़-सुथरी जिन्दगी जीने का मुख्य आधार है, अगर हम समाज को दरकिनार करेंगे तो हमारा जीवन एक नरक की तरह बन जाता है, निजी जीवन जीने के लिए आज कल पैसा ही सब कुछ है, पर समाज में भी रहना जरुरी है, जीवन में आदमी महान कब होता है जब इज्जत-मान-मर्यादा हर आदमी का अपना परिवार होता है, इसके लिए समाज बहुत जरुरी है, अपने कल संवारने के लिए आज समाज को सम्मान देकर और उससे प्रेरणा लेते हुए आगे बढने की कोशिश की जाए।

                हमें अपने समाज से बुराई को हटाना होगा, जब तक हम समाज में व्याप्त बुराई को हटाने में कोई सहयोग नहीं करते हैं तब तक हम उन्‍नति नही कर सकते, कितने लोग सोचते व कहते हैं कि एक हमारे चाहने से क्या होगा ..... पूरी दुनियाँ ऐसी हैं तो क्या एक सिर्फ हमारे सुधरने से दुनियाँ सुधर जायेगी ... इस तरह से लोग कई बात कहते हैं, पर हमें सोचना व समझना चाहिए कि हम और आप जैसे व्यक्तियों से ही यह समाज बना है, तब फिर हमारे व आपके सुधरने से यह समाज क्यों न सुधरेगा, याद रखें हमारे-आपके सहयोग से ही इस समाज की उन्नति संभव है, हम सभी से यह आह्वान करना चाहते है कि अपने में सुधार लाते हुए समाज को सुधारने में अपना योगदान दें।
समाज के समन्दर की मैं एक बूँद हूँ, और मेरा प्रयास वैचारिक परमाणुओं को संग्रहित कर सागर की निर्मलता को बनाए रखना।


             बन्धुओं में हम इस सन्देश को आप लोगो तक पहुंचा रहे है, और हमें पूर्ण विष्वास है आप समाज बन्धु इस सन्देश को न केवल दिल से पढोगे बल्कि
इस हकीकत को महसुस भी करोगे।

संकलनकर्ता - जेताराम खोभला 98673 25011
प्रकाषक  -  महेन्द्र आल 9610969896

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017




 अच्छा दिन

प्रणाम मित्रों,


आज 27 जनवरी का दिन मैं आप लोगों के साथ शेयर करने जा रहा हुं क्योंकि आज मुझे बहुत कुछ सिखने को मिला।
हमेषा की भाँति आज भी मैं सुबह तैयार होकर 10 बजे आॅफिस पहुंचा और पूजा वगैरा करके अपने काम पर लग गया, तब तक मेरे आफिस के सभी सहकर्मी भी पहुंच चुके थे। करीब ग्यारह बजे हमारे कम्पनी के मालिक सुरेष भाई भी आॅफिस पहुंचे, तब मैं कम्प्युटर में फोटो डिजाईन कर रहा था। थोड़ी देर बाद सभी जनों को आॅफिस में बुलाया गया, मैं भी वहीं था, और उन्होंने बताया कि अपनी कम्पनी Rocwins Inc से बैंगलोर अन्र्तराष्ट्रीय प्रदर्षनी केन्द्र-2017 (Bangalore International Exhibition Centre-2017) में विजीटर के तौर पर किसे भेजा जाए, तब सभी ने इषारा मेरी ओर कर दिया। सुरेष भाई ने कहा कि महेन्द्र तुम जाओगे, तो मैंने कहा हां ठीक है। फिर उन्होंने मुझे सबसे पहले तो वहां के नियम एवं जरूरी बातें बताई और कहा तुम जाओ। मैं करीब डेढ़ घंटे के बाद बैंगलोर ट्रेफिक में बाईक ड्राइव करते-करते वहां पहुंचा, वहां का नजारा देखकर मैं तो एक दम सन्न सा रह गया। बाइक को पार्क किया और सीधे पहुंचा आॅनलाईन रजिस्ट्रेषन काउन्टर पर, वहां भी भीड़ थी लेकिन जल्द ही रजिस्ट्रेषन हो गया। वहां मुझे हाॅल नम्बर - 1 में स्टाॅल नम्बर 108 पर SPINKS Softech Pvt. Ltd-Chennai से आए गौरव सिंह से मिलना था और उनसे हमारे कम्पनी में लगी मषीन संबंधित जानकारी लेनी थी। हाॅल के बाहर लगे नक्षे को देखकर मैं आसानी से उनके पास पहुंच गया, वहां गौरव सिंह के साथ पांच मेम्बर और भी थे, उनसे मिला और उन्होंने मुझे कम्पनीज भविष्य के बारे में विस्तार से समझाया। मैं एक जिज्ञासु की तरह उनसे सीखने के लिए बार-बार सवाल-जवाब कर रहा था, वो भी मुझे हर एक सवाल को विस्तारपूर्वक समझा रहे थे। करीब चार घंटे उनके साथ बिताए पर मुझे पता ही नहीं चला, यहां आकर मैंने आज पहली बार कोई ऐसा प्रदर्षनी केन्द्र देखा था, हां एक बात कहना भुल गया कि आज मेरी टुटी-फुटी अंग्रेजी ने मेरा भरपुर साथ दिया क्योंकि आज हिन्दी भाषा का एक भी शब्द मेरे सामने नहीं था और न ही मुझे कन्नड़ भाषा बोलनी आती थी। मैनंे गौरव सिंह और उनके स्टाॅफ को थैंक्यू बोला और मैं वहां से रवाना हो गया। आज का दिन मेरे लिए बहुत कुछ सीखने वाला दिन था और मैंने सीखने की कोषिष भी की।  मैं सुरेष भाई एवं मेरे स्टाॅफ को भी धन्यवाद देता हुं जिन्होंने मुझे मेरी कम्पनी से विजीटर के तौर पर चुना।

धन्यवाद! और मिलते है अगले अंक में।

महेन्द्र पी देवासी


मंगलवार, 24 जनवरी 2017

"अपनी काबलियत पर भरोसा"

                             खुद की क्षमताओं पर भरोसा होना आत्मविश्वास का जरूरी हिस्सा है। कुछ लोग स्वाभाविक रूप से आत्मविश्वासी होते हैं, तो कुछ को इसे विकसित करने की जरूरत होती है। अपनी काबलियत पर हमें हमेशा विश्वास करना चाहिए, क्योंकि जीवन में हमें अपना आत्म विश्वास और अपनी काबलियत ही आगे ले जाती है। खुद में आत्मविश्वास पैदा करने की जरूरत है। अपनी उपलब्धियों पर नजर डालें। अक्सर अभावों के बारे में सोचने के कारण अपनी क्षमता और प्रतिभा का बेहतर इस्तेमाल नहीं कर पाते। आत्मविश्वास में सुधार करने की दिशा में काम करें। तनाव की स्थितियों में बेहतर कार्य करने का कौशल विकसित करें। सकारात्मक लोगों के साथ रहें। यदि आपको अपने चुने हुए मार्ग पर विश्वास है, और इस पर चलने का साहस और मार्ग की हर कठिनाई को जीतने की शक्ति है, तो आपका सफल होना निश्चित है। इसी संदर्भ में एक कहानी से कुछ सीखते है.
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                               बहुत समय पहले की बात है, एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे , और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया। जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया, और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था। राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे। राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, ” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे, पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था, वहीँ दूसरा कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था।                                                            
              ये देख, राजा को कुछ अजीब लगा “क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”, राजा ने सवाल किया।” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।” राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे, और वो दुसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना देखना चाहते थे। अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा। फिर क्या था, एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे, पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।
                फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं। उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था। वह व्यक्ति एक किसान था। अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा, ” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर दिखाया। ““मालिक ! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ, मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिस पर बैठने का बाज आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।

             प्रिये मित्रों, हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं। लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की, कुछ बड़ा करने की काबलियत को भूल जाते हैं।

✍........महेन्द्र आल, 9610969896

दूसरों से तुलना दुःख का कारण

                हमारे दुःख का एक कारण यह भी है कि हम दूसरों के सुखों से अपनी तुलना करते रहते है कि उसके पास ज्यादा है,मेरे पास कम है। जो हमें मिला है यदि उसी पर ध्यान हो तो दुखी नहीं होंगे क्योंकि दुःख तो तुलना से आता है, जब अपने से ज्यादा खुशहाल व्यक्ति से तुलना करोगे तो दुःख आएगा और अपने से नीचे व्यक्ति से अपनी तुलना करोगे तो अहंकार उभर कर आएगा कि 'मैं बड़ा हूँ'! इसप्रकार ज़िन्दगी भर किसी न किसी से तुलना करके सुखी-दुखी होते रहते है। क्योंकि मन को दुःख की विलासिता भी बड़ी अच्छी लगती है इसलिए जान बूझकर मन दुःख को कहीं न कहीं से ढूंढ लाता है। और यही हमारे विकास का सबसे बड़ा रोड़ा बन जाता है हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम मन को बार-बार ऊँचे से ऊँचा विचार देते रहे और अपने को किसी कार्य में व्यस्त रखे क्योंकि खाली मन दुःख ही लेकर आता है। जब मन विचार सहित व्यस्त नहीं होता तब अस्त-व्यस्त हो जाता है।

आपने कई बार कुछ लोगों को ऐसा कहते सुना होगा, 'मुझे अपने जीवन में न्याय नहीं मिला। मुझे भेदभाव का सामना करना पड़ा। मेरे आस पास ऐसे लोग हैं जिन्हें सब कुछ आसानी से मिल जाता है। कई लोगों को अपने जीवन में रत्ती भर भी दुख या कष्ट का सामना नहीं करना पड़ा। उन के पास बड़े-बड़े आलीशान मकान है और मैं एक छोटे से फ्लैट में रहता हूं। वह कोई ठोस काम भी नहीं करता, फिर भी उसे मुझसे ज्यादा तारीफ मिलती है।हमारा बहुत समय अक्सर दूसरों के साथ अपनी तुलना करने में ही निकल जाता है। क्या ऐसी तुलना सकरात्मक या फलदायी होती है? दोनों फलों के अपने गुण हैं। दोनों दो तरह के हैं। दोनों को एक ही तरह से नहीं आंका जा सकता। इसी तरह हर एक आत्मा अपने आप में एक अलग पहचान लिए होती है। हमारे कर्म पुरुषार्थ के साथ मिल कर तय करते हैं कि हमें क्या मिलता है और क्या नहीं मिलता। तुलना करना गलत नहीं है, यदि वह स्वस्थ तुलना है और हम किसी को हराने की मंशा से नहीं, अपनी कमियों पर विजय पाने के लिए करते हैं। लेकिन हम सकारात्मक तुलना कम करते हैं। जो हमारे पास है, उससे हम संतुष्ट नहीं हैं और वह सब कुछ पाना चाहते हैं जो दूसरों के पास है। पद, प्रतिष्ठा, संपत्ति या कुछ और जिससे हम समझते हैं कि हमें खुशी मिल सकती है। दूसरों से अपनी तुलना हममें ईर्ष्या और असुरक्षा ही पैदा करती है। इसी संदर्भ में अब एक कहानी पर विचार करते हैं  ……


एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बागीचे में सैर करने गया , पर वहां पहुँच उसने देखा कि सारे पेड़- पौधे मुरझाए हुए हैं । राजा बहुत चिंतित हुआ, उसने इसकी वजह जानने के सभी पेड़-पौधों से एक-एक करके सवाल पूछने लगा।
ओक वृक्ष ने कहा, वह मर रहा है क्योंकि वह देवदार जितना लंबा नहीं है। राजा ने देवदार की और देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे क्योंकि वह अंगूर लता की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था। अंगूर लता इसलिए मरी जा रही थी की वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी। 
राजा थोडा आगे गया तो उसे एक पेड़ नजर आया जो निश्चिंत था, खिला हुआ था और ताजगी में नहाया हुआ था। 
राजा ने उससे पूछा, ” बड़ी अजीब बात है , मैं पूरे बाग़ में घूम चुका लेकिन एक से बढ़कर एक ताकतवर और बड़े पेड़ दुखी हुई बैठे हैं लेकिन तुम इतने प्रसन्न नज़र आ रहे हो…. ऐसा कैसे संभव है ?” 
पेड़ बोला, ” महाराज, बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाये स्वयं की दूसरों से तुलना कर दुखी हैं, जबकि मैंने यह मान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बागीचे को सुन्दर बनाऊं, यदि आप इस स्थान पर ओक, अंगूर या गुलाब चाहते तो उन्हें लगवाते !! इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता के अनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ ।“

                  कहने का तात्पर्य है की हमेशा अपने गुणों, अपनी योग्यताओ पर ध्यान केन्द्रित करे। यह जान ले, आप जितना समझते है, आप उससे कही बेहतर है। बड़ी सफलता उन्ही लोगो का दरवाजा खटखटाती है जो लगातार खुद के सामने उचे लक्ष्य रखते है, जो अपनी कार्यक्षमता सुधारना चाहते है।

✍........महेन्द्र आल, 9610969896

"मेरे साजन हैं उस पार"

जीवन एक ऐसा सफ़र है जिसमें नही मालूम किन राहों से गुजरना होगा और कैसे कैसे मोड़ आयेंगे. यह आलेख उन अभिशप्त महिलाओं के बारे में है जिनके पति शादी के कुछ ही दिनों बाद उसे अकेला छोड़ कर गल्फ देशो में कमाने के लिए चले जाते हैं। केरल की अधिकांश महिलाएं ऐसे ही जुदाई के गम में घुट घुट कर  जी रही हैं। गल्फ में काम कर रहे पुरूषों से शादी करने वाली महिलाएं लंबे इंतजार को अभिशप्त हैं।
दुल्हन नाबालिग है मगर समाज के रस्म और रिवाज के हिसाब से शादी के लायक हो चुकी है. भले शादी उसकी मर्ज़ी से हो या मर्जी के खिलाफ. उसे तो समाज की मर्ज़ी के हिसाब से चलना है। ये प्रथा कई साल से चली आ रही है और समाज को लगता है कि लड़कियों की शादी जल्द ही हो जानी चाहिए। इस तरह की शादियों की वजह से अब ज़्यादातर लड़कियां मानसिक रोगी हो गई हैं. वो घुट घुट कर जीने को मजबूर हैं। "शादी के बाद इनका साथ सिर्फ चंद दिनों का ही होता है. फिर लड़का खाड़ी देश अपनी नौकरी पर चला जाता है और फिर वो कब आएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. दो सालों के बाद आएगा भी तो सिर्फ पंद्रह दिनों या एक महीने के लिए।" 
        समाज में पुरानी प्रथा चली आ रही है कि पंद्रह साल की होते होते ही लड़कियों की शादी कर दी जाए. समाज सोचता है कि पंद्रह साल की उम्र से ज्यादा होने पर लड़की के लिए दूल्हा मिलना मुश्किल हो जाता है। खाड़ी में काम करने वाले युवक यहां की पहली पसंद हैं. यानी ये सबसे योग्य वर समझे जाते हैं. अपने देश या अपने राज्य में नौकरी करने वाले उनसे कमतर माने जाते हैं. माना जाता है कि खाड़ी देश में काम करने वाले ज्यादा पैसे कमाते हैं. इसलिए इनकी मांग ज्यादा है।बदलते ज़माने के साथ ये प्रथा समाज के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है क्योंकि ऐसी लड़कियां अब मानसिक रोगी हो रही हैं। कई बार देखने में आया है की शादी के बाद जो पैसा दहेज़ के रूप में दिया गया उसे लेकर उसका पति खाड़ी के किसी देश नौकरी के लिए चला गया. फिर उसने संपर्क ही ख़त्म कर दिया। ये अपना दुख ना तो किसी को बता सकती हैं और ना ही समाज से कोई शिकायत ही कर सकती हैं. आज ये मानसिक रोगियों का जीवन जीने को मजबूर हो गई हैं।
 दरअसल कम उम्र में खाड़ी देशों में काम करने वाले युवकों से शादी के बाद वो अब अकेली रह गई हैं. इस तन्हाई और अकेलेपन ने इनको मानसिक रूप से तोड़ दिया है और ये समस्या अब समाज के साथ साथ केरल की सरकार के लिए भी चिंता का विषय बन गई है।“सबसे बड़ी समस्या है कम उम्र में लड़कियों की शादी कराने की प्रथा. वो जल्दी माँ बन जाती हैं और पति से दूर रहते रहते हुए उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती. मानसिक रोग कई समस्याओं की जननी है.” "इनकी त्रासदी है कि सुहागिन होते हुए भी वो विधवाओं जैसा जीवन जीने पर मजबूर हैं. पति का इंतज़ार करना इनकी नियति है. और अपने अरमानों का गला घोटना इनका कर्त्तव्य."
                  इस तरह की शादियों के कई और पहलू भी है. वो लड़के, जो अपनी पूरी ज़िंदगी खाड़ी के देशों में मेहनत कर बिता देते हैं ताकि उनका परिवार सुखी रहे, वो ज़िन्दगी के अगले पड़ाव में अपने आपको अकेला महसूस करने लगते हैं.परिवार से दूर रहने की वजह से परिवार के लोगों का उनसे उतना भावनात्मक जुडाव नहीं रहता. उन्हें लगता है कि वो बस पैसे कमाने की एक मशीन भर बन कर रह गए हैं. “कमाने के लिए बहार गए. रात दिन मेहनत की. दूर रहकर पैसे इकठ्ठा किए. दूर रहने से क्या हुआ. ये हुआ कि हमारे लिए किसी की कोई भावना नहीं है. हम साथ नहीं रहे ना. अब ना बीवी पहचानती है न बच्चे.”
थक गए हम उनका इंतज़ार करते-करते;
रोए हज़ार बार खुद से तकरार करते-करते;
दो शब्द उनकी ज़ुबान से निकल जाते कभी;
और टूट गए हम एक तरफ़ा प्यार करते-करते।
"मेरे प्रियतम, तुम बाहर जाना चाहते हो और तुम्हारा रास्ता कठिन और दूर है। आज जाने के बाद तुम कब वापिस आओगे, जाने से पहले मुझे एक वचन दो, और मैं तुम्हारे लौटने का इंतजार करूंगी।"

✍........महेन्द्र आल, 9610969896

"आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं है"

एक दिन मैंने समाचार पत्र में एक व्यक्ति के आत्महत्या करने का समाचार पढ़ा, मन मर्माहत हुआ। आये दिन हमलोग आत्महत्या कि बढ़ती घटनाओं को सुनते ही रहते है, क्या आत्महत्या किसी समस्या का उचित समाधान है? आत्महत्या करने वालों कि समस्याएं पर नजर डालें तो इनमे पारिवारिक कलह, दिमागी बीमारी, परीक्षा में असफलता, प्रेम-प्रसंग से आहत ऐसे कई कारण आते हैं।
आत्महत्या का अर्थ जान बूझकर किया गया आत्मघात होता है। वर्तमान युग में यह एक गर्हणीय कार्य समझा जाता है, परंतु प्राचीन काल में ऐसा नहीं था; बल्कि यह निंदनीय की अपेक्षा सम्मान्य कार्य समझा जाता था। हमारे देश की सतीप्रथा तथा युद्धकालीन जौहर इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। मोक्ष आदि धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर भी लोग आत्महत्या करते थे। आत्महत्या के लिए अनेक उपायों का प्रयोग किया जाता है जिनमें मुख्य हैं: फांसी लगाना, डूबना, गला काट डालना, तेजाब आदि द्रव्यों का प्रयोग, विषपान तथा गोली मार लेना। उपाय का प्रयोग व्यक्ति की निजी स्थिति तथा साधन की सुलभता के अनुसार किया जाता है।
           कारण कुछ भी हो, त्महत्या किसी भी तरीके से उचित नही माना  जा सकता। यद्धपि आम तौर पर से आत्महत्या करना कायरता पूर्ण काम माना जाता है, पर कुछ लोगो कि नजर में आत्महत्या करना बहादुरी का भी काम है, लेकिन मैं कहना चाहूँगा यह बहादुरी वैसी नहीं है जैसी कारगिल के मोर्चे पर हमारे देश के वीर सैनिकों ने प्रदर्शित की। बहादुरी वह होती है जो एक सैनिक या सेनापति की विशेषता होती है और बहादुरी डाकू सरदार कि भी होती है वर्ना वह डाकू दल का सरदार बन ही नहीं सकता था। फर्क इतना ही होता है कि सैनिक बहादुरी का सही उपयोग करता है और डाकू सरदार बहादुरी का दुरूपयोग करता है, साथ ही कायर भी होता है वरना जंगलों में छिपते फिरने कि क्या जरूरत ? ऐसे ही आत्महत्या करने वाला एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह कायर भी होता है और बहादुर भी।

             आत्महत्या करने का कारण जो भी हो पर हर सूरत में आत्महत्या करना गलत काम है। आत्महत्या करने मरने से कर्मगति पीछा थोड़े ही छोड़ देगी बल्कि जीवन को ठुकराने और आत्महत्या करने का एक पाप और बढ़ जाएगा। मरने से कुछ हासिल नही होता। जरा यह भी सोचना चाहिए कि कैसी भी समस्या हो, विवेक, धैर्य और साहस  से काम लेने कि जरूरत होती है। अगर इन तीनों मित्रों का साथ न छोड़ा जाए तो कैसा भी संकट हो अंत में हम विजयी हो ही  जायेंगे। समस्या का समाधान कर ही लेंगे। यह भी यद् रखें ईश्वर भी उन्हीं कि मदद करता है जो अपनी मदद आप खुद करते हैं।

आप भी इस समस्या पर अपने विचार प्रकट करें !

✍........महेन्द्र आल, 9610969896

(कन्या भ्रूण-हत्या एक जघन्य अपराध)

प्रत्येक शुभ कार्य में हम कन्या पूजन करते हैं, लेकिन बड़ा सवाल है कि उसी कन्या को हम जन्म से पहले ही मारने का पाप क्यों करते हैं? आज समाज के बहुत से लोग शिक्षित होने के बावजूद कन्या भूर्ण हत्या जैसे घृणित कार्य को अंजाम दे रहे हैं। जो आंचल बच्चों को सुरक्षा देता है, वही आंचल कन्याओं की गर्भ में हत्या का पर्याय बन रहा है। हमारे देश की यह एक अजीब विडंबना है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। समाज में लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है।आज भी शहरों के मुकाबले गांव में दकियानूसी विचारधारा वाले लोग बेटों को ही सबसे ज्यादा तव्वजो देते हैं, लेकिन करुणामयी मां का भी यह कर्तव्य है कि वह समाज के दबाव में आकर लड़की और लड़का में फर्क न करे। दोनों को समान स्नेह और प्यार दे। दोनों के विकास में बराबर दिलचस्पी ले। बालक-बालिका दोनों प्यार के बराबर अधिकारी हैं। इनके साथ किसी भी तरह का भेद करना सृष्टि के साथ खिलवाड़ होगा।
                      साइंस व टेक्नॉलोजी ने कन्या-वध की सीमित समस्या को, अल्ट्रासाउंड तकनीक द्वारा भ्रूण-लिंग की जानकारी देकर, समाज में कन्या भ्रूण-हत्या को व्यापक बना दिया है। दुख की बात है कि शिक्षित तथा आर्थिक स्तर पर सुखी-सम्पन्न वर्ग में यह अतिनिन्दनीय काम अपनी जड़ें तेज़ी से फैलाता जा रहा है।1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम नेटल डायग्नोस्टिक एक्ट 1995 के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है। इसके बावजूद इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है.अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी मशीन या अन्य तकनीक से गर्भधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, करवाना, सहयोग देना, विज्ञापन करना कानूनी अपराध है।
लेकिन यह स्त्री-विरोधी नज़रिया किसी भी रूप में गरीब परिवारों तक ही सीमित नहीं है. भेदभाव के पीछे सांस्कृतिक मान्यताओं एवं सामाजिक नियमों का अधिक हाथ होता है. यदि इस प्रथा को बन्द करनी है तो इन नियमों को ही चुनौती देनी होगी. कन्या भ्रूण हत्या में पिता और समाज की भागीदारी से ज्यादा चिंता का विषय है इसमें मां की भी भागीदारी. एक मां जो खुद पहले कभी स्त्री होती है, वह कैसे अपने ही अस्तितव को नष्ट कर सकती है और यह भी तब जब वह जानती हो कि वह लड़की भी उसी का अंश है. औरत ही औरत के ऊपर होने वाले अत्याचार की जड़ होती है यह कथन पूरी तरह से गलत भी नहीं है. घर में सास द्वारा बहू पर अत्याचार, गर्भ में मां द्वारा बेटी की हत्या और ऐसे ही कई चरण हैं जहां महिलाओं की स्थिति ही शक के घेरे में आ जाती है. औरतों पर पारिवारिक दबाव को भी इन्कार नहीं किया जा सकता
 खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
आने  दो रे आ ने  दो, उन्हें इस  जीवन  में आने  दो

भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा  जाल बिछाने  दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
                                                                                                           
(आइये एक संकल्प लेते हैं ,कन्या भ्रूण -हत्या एक जघन्य अपराध है , हम सभी को मिलकर साँझा प्रयत्नों एवं जन जाग्रती द्वारा इस कु -कृत्य को जड़ से उखाड़ने के समस्त प्रयत्न  करेंगें ! यही समय की मांग है !!)

✍........महेन्द्र आल, 9610969896

"अपने आप को जानें और पहचानें"

             हमारी ज्यादा रूचि सिर्फ दूसरों को जानने और अपनी जान पहचान बढ़ाने में ही रहती है, खुद अपने को जानने में नहीं रहती। हमारी यह भी कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक लोग हमें जानें, हम लोकप्रिय हों पर यह कोशिश हम जरा भी नहीं करते कि हम खुद के बारे में जानें कि हम क्या हैं, क्यों हैं, क्यों पैदा हुए हैं, किसलिए पैदा हुए हैं। हम हमारे बारे में जो कुछ जानते हैं वह दरअसल हमारे खुद के बारे में जानना समझते हैं जबकि यह एक गलतफहमी है क्योकि जो जो 'हमारा' है वह 'हम' नहीं हैं, यहां तक की हमारा 'शरीर' भी दरअसल 'हम' नहीं बल्कि 'हमारा' है। इस स्थिति से हमारा बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। हमारा जीवन व्यतीत होता जा रहा है और हमें अभी तक यहीं मालूम नहीं है कि हम क्या हैं, क्यों है आदि। हमारा पूरा ध्यान बाहरी धन सम्पदा, परिवार, मकान, दुकान, घर गृहस्थी पर लगाये रहते हैं, और जो असली हम हैं उसे याद तक नही करते। इससे हम बाहर बाहर भले ही सम्पन्न हों, पर भीतर से दरिद्र होते जा रहें हैं। इसको समझने के लिए एक बोध कथा को देखते हैं।
                 "एक बहुत बड़े भवन में आग लग गई और तेज हवा के कारण देखते-देखते आग पूरे भवन में फ़ैल गई। आग को बुझाने के लिए घर के लोग और पड़ोसी मिलकर सामान निकलने लगे। मकान मालिक के परिवार का हाल बेहाल था और उन्हें कुछ सूझ नही रहा था। सामान निकालने वालों ने पूछा की कुछ और अंदर तो नही रह गया है, हमें बता दो। घर के लोग बोले -हमारे होश ठिकाने नहीं है, कृपया आप ही लोग देख लें। थोड़ी देर में आग पर काबू पाया गया तो घर का मालिक दिखाई नही दे रहा था जबकि आग लगने के पहले घर में ही सो रहा था। घर वाले रोने पीटने लगे। सबने मिलकर जो जो हमारा था वह तो बचा लिया पर इसका ज्ञान किसी को नही था की मकान मालिक अंदर सो रहा है सो वह अंदर ही जल गया। ऐसा ही हमारे बारे में हो रहा है। हम समान बचाने में लगे हुए हैं और खुद का हमें पता नही।"

✍........महेन्द्र आल, 9610969896

"दूसरों से शिक्षा लें "

                    एक कहावत है की आगे वाला गिरे तो पीछे वाला होशियार हो जाये। जो बुद्धिमान होते हैं वे दूसरों के हालात देखकर शिक्षा ले लेते हैं। यदि हम भी चाहें और अपने ज्ञानचक्षु खुले रखें तो हम कदम-कदम दुसरो शिक्षा ले सकते हैं। दूसरों का परिणाम देखकर नसीहत ले सकते हैं क्योकि प्रत्येक शिक्षा खुद हीअनुभव करके ग्रहण की जाय यह जरा मुशिकल काम है। आग से हाथ जल जाता है यह हमने सुना है और जाना है तो अब खुद हाथ जला कर देखने की जरूरत नही। जिन बुरे कामों के बुरे परिणाम दूसरे भोग रहे हैं उन्हें देखकर उन कामों को न करने की शिक्षा ग्रहणकर लेना चाहिए। जो दूसरों को गिरता देख कर सम्भल जाते हैं वे व्यक्ति वाकई बुद्धिमान हैं।

✍........महेन्द्र आल, 9610969896

"सिर्फ कथनी ही नही, करनी भी"

प्रिये मित्रों, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो विचार तो अच्छे रखते हैं पर उन पर अमल नही करते या कर नही पाते। यूँ अच्छे विचार रखना अच्छा तो होता है पर जब तक अमल में न लिया जाए तब तक विचार फलित नही होता, निष्काम रहना है। मात्र रोटी का ख्याल करते रहने से भूख मिटती नहीं, बढ़ जाती है। भूख मिटाने के लिए रोटी खाना जरूरी होता है। तैरने की विधि पुस्तक में पढ़ लेने और जान लेने से तैरना नही आ सकता बल्कि तैरने का प्रयत्न करने से ही तैरना आता है। मात्र विचार निष्प्राण है, विचार को अमल में लेना ही फलदायी होता है। ‘मन में जो भव्य विचार या शुभ योजना उत्पन्न हो, उसे तुरंत कार्यरूप मे परिणत कर डालिए, अन्यथा वह जिस तेजी से मन में आया, वैसे ही एकाएक गायब हो जाएगा और आप उस सुअवसर का लाभ न उठा सकेंगे।’ ‘सोचो चाहे जो कुछ, पर कहो वही, जो तुम्हें करना चाहिए।’ जो व्यक्ति मन से, वचन से, कर्म से एक जैसा हो, वही पवित्र और सच्चा महात्मा माना जाता है। कथनी और करनी सम होना अमृत समान उत्तम माना जाता है। जो काम नहीं करते, कार्य के महत्व को नहीं जानते, कोरा चिंतन ही करते हैं, वे निराशावादी हो जाते हैं। कार्य करने से हम कार्य को एक स्वरूप प्रदान करते हैं। ‘काल करे सो आज कर’ में भी क्रियाशीलता का संदेश छिपा है। जब कोई अच्छी योजना मन में आए, तो उसे कार्यान्वित करने में देरी नहीं करनी चाहिए। अपनी अच्छी योजनाओं में लगे रहिए, जिससे आपकी प्रवृत्तियां शुभ कार्यों में लगी रहें। कथनी और करनी में सामंजस्य ही आत्म-सुधार का श्रेष्ठ उपाय है। 

✍........महेन्द्र आल, 9610969896

गुरुवार, 19 जनवरी 2017

पापा देखो मेंहदी वाली मुझे मेंहदी लगवानी है


"पाँच साल की बेटी बाज़ार में बैठी मेंहदी वाली को देखते ही मचल गयी...

" कैसे लगाती हो मेंहदी " पापा नें सवाल किया...

" एक हाथ के पचास दो के सौ ...? मेंहदी वाली ने जवाब दिया.....

पापा को मालूम नहीं था मेंहदी लगवाना इतना मँहगा हो गया है.... "नहीं भई एक हाथ के बीस लो वरना हमें नहीं लगवानी." यह सुनकर बेटी नें मुँह फुला लिया...

"अरे अब चलो भी , नहीं लगवानी इतनी मँहगी मेंहदी" पापा के माथे पर लकीरें उभर आयीं ....

"अरे लगवाने दो ना साहब.. अभी आपके घर में है तो आपसे लाड़ भी कर सकती है.. कल को पराये घर चली गयी तो पता नहीं ऐसे मचल पायेगी या नहीं. ... तब आप भी तरसोगे बिटिया की फरमाइश पूरी करने को..

मेंहदी वाली के शब्द थे तो चुभने वाले पर उन्हें सुनकर पापा को अपनी बड़ी बेटी की याद आ गयी... जिसकी शादी उसने तीन साल पहले एक खाते -पीते पढ़े लिखे परिवार में की थी.... उन्होंने पहले साल से ही उसे छोटी
छोटी बातों पर सताना शुरू कर दिया था.... दो साल तक वह मुट्ठी भरभर के रुपये उनके मुँह में ठूँसता रहा पर
उनका पेट बढ़ता ही चला गया ... और अंत में एक दिन सीढियों से गिर कर बेटी की मौत की खबर  ही मायके पहुँची...

आज वह छटपटाता है  कि उसकी वह बेटी फिर से उसके पास लौट आये..? और वह चुन चुन कर उसकी
सारी अधूरी इच्छाएँ पूरी कर दे.. पर वह अच्छी तरह जानता है  कि अब यह असंभव है.

" लगा दूँ बाबूजी...?,  एक हाथ में ही सही " मेंहदी वाली की आवाज से पापा की तंद्रा टूटी..

"हाँ हाँ लगा दो.  एक हाथ में नहीं दोनों हाथों में. ...और हाँ, इससे भी अच्छी वाली हो तो वो लगाना...

पापा ने डबडबायी आँखें  पोंछते हुए कहा  और बिटिया को आगे कर दिया...
जब तक बेटी हमारे घर है उनकी हर इच्छा जरूर पूरी करे,...

क्या पता आगे कोई इच्छा पूरी हो पाये या ना हो पाये ।

ये बेटियां भी कितनी अजीब होती हैं जब ससुराल में होती हैं तब माइके जाने को तरसती हैं...

सोचती हैं कि घर जाकर माँ को ये बताऊँगी पापा से ये मांगूंगी बहिन से ये कहूँगी भाई को सबक सिखाऊंगी
और मौज मस्ती करुँगी.. लेकिन जब सच में मायके जाती हैं तो एकदम शांत हो जाती है किसी से कुछ भी नहीं बोलती.. बस माँ बाप भाई बहन से गले मिलती है। बहुत बहुत खुश होती है। भूल जाती है कुछ पल के लिए पति ससुराल....

क्योंकि एक अनोखा प्यार होता है मायके में एक अजीब कशिश होती है मायके में.....ससुराल में कितना भी प्यार मिले.... माँ बाप की एक मुस्कान को तरसती है ये बेटियां... ससुराल में कितना भी रोएँ पर मायके में एक भी आंसूं नहीं बहाती ये बेटियां... क्योंकि बेटियों का सिर्फ एक ही आंसू माँ बाप भाई बहन को हिला देता है
रुला देता है..... कितनी अजीब है ये बेटियां कितनी नटखट है ये बेटियां भगवान की अनमोल देंन हैं  ये बेटियां ..

हो सके तो बेटियों को बहुत प्यार दें उन्हें कभी भी न रुलाये क्योंकि ये अनमोल बेटी दो परिवार जोड़ती है
दो रिश्तों को साथ लाती है। अपने प्यार और मुस्कान से।

हम चाहते हैं कि सभी बेटियां खुश रहें  हमेशा भले ही हो वो मायके में या ससुराल में।

खुशकिस्मत है वो जो बेटी के बाप हैं, उन्हें भरपूर प्यार दे, दुलार करें और यही व्यवहार अपनी पत्नी के साथ भी करें क्यों की वो भी किसी की बेटी है और अपने पिता की छोड़ कर आपके साथ पूरी ज़िन्दगी बीताने आयी है।  उसके पिता की सारी उम्मीदें सिर्फ और सिर्फ आप से हैं।

ये पोस्ट समर्पित है हर नारी को।

अगर ये पोस्ट दिल को छु गया हो तो और लोगों के साथ शेयर करें। 

✍........महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

अपने तो अपने होते है....

 
बाकी सब सपने होते है
अपने तो अपने होते है..
चन्ना वे जा के जल्दी चले आना
जानेवाले तेनु बिनातिया, गलिय पुकारेगी
जानेवाले तेनु बागा विच कालिया पुकारेगी


मुझसे तेरा मोह ना छूटे, दिल ने बनाए कितने बहाने
दूजा कोई क्या पहचाने, जो तन लागे सो तन जाने
बीते गुजरे लम्हो की सारी बाते तडपाती है
दिल की सुर्ख दीवारो पे बस यादे रह जाती है
बाकी सब सपने होते है
अपने तो अपने होते है.. 


चन्ना वे जा के जल्दी चले आना
जानेवाले तेनु बिनातिया, गलिय पुकारेगी
जानेवाले तेनु बागा विच कालिया पुकारेगी
तेरे संग लाड लगाव वे, तेरे संग लाड लगाव,
तेरे संग प्यार निभाव वे, तेरे संग प्यार निभाव..

मेरी दुवायो मे इतना असर हो
हर दर्द गम से तू बेखबर हो
उम्मीदे टूटे न मेरे आशियाने की
खुशिया मिले तुझको सारे जमाने की
तेरे संग लाड लगाव रे, तेरे संग लाड लगाव
तेरे संग प्यार निभाव रे, तेरे संग प्यार निभाव
बीते गुजरे लम्हो की साड़ी बाते तडपाती है
दिल की सुर्ख दीवारो पे बस यादे रह जाती है
बाकी सब सपने होते है
अपने तोह अपने होते है..

तेरी मेरी राहो मे चाहे दूरिय है
इन फासलो मे भी नज़दीकिया है
सारी रंजिशो को तू पल मे मिटा ले
आजा आ भी जा मुझको गले से लगा ले
तेरे संग लाड लगाव रे, तेरे संग लाड लगाव
तेरे संग प्यार निभाव रे, तेरे संग प्यार निभाव
बीते गुजरे लम्हो की साड़ी बाते तडपाती है
दिल की सुर्ख दीवारो पे बस यादे रह जाती है
बाकी सब सपने होते है
अपने तो अपने होते है....

चन्ना वे जा के जल्दी चले आना
जानेवाले तेनु बिनातिया, गलिय पुकारेगी
जानेवाले तेनु बागा विच कालिया पुकारेगी

अपने तो अपने होते है...


https://www.youtube.com/watch?v=Kwqljnl_ccY

✍........महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम

रविवार, 8 जनवरी 2017

आंपणें देवासियों रे मारवाड़ी गीतों रो आनंद

 चढ़ लाडा, चढ़ रे ऊँचे रो 

चढ़ लाडा, चढ़ रे ऊँचे रो, देखाधूं थारो सासरो रे 

जांणे जाणें जोगीड़ो रा डेरा, ऐंडू के शार्रूं सासरो रे 

 

चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचो रो, देखांधू थारा सुसरा रे 

जाणें जाणें पड़गो रा वौरा, ऐड़ा रे थारा सुसरा रे 

 

चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचे रे देखांधू थारो सासरो रे 

जाणें जाणें पड़गा री "बोंरी' ऐड़ी तो थारी सासूजी रे 

 

चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचे रो, देखांधू थारो सासरो रे 

जाणें जाणें जोगीड़ा री छोरी, ऐड़ी तो थारी साली रे 

✍......... महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम 9610969896

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घाम पड़े, धरती तपै रे 

घाम पड़े, धरती तपै रे, पड़े नगांरा री रोल 

भंवर थारी जांत मांयने 

  बापाजी बिना कड़ू चालणू रे 

बापा मोत्यां सूं मूंगा साथा 

  भंवर थारी जांन मांयने 

माताजी बिना केडूं चालणू रे 

  माताजी हरका दे साथ 

भंवर थारी जान मांयने 

  घाम पड़े, धरती रपै रे, पड़े नागरां री रौल 

भवंर थारी जांन मांयने 

 ✍......... महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम 9610969896


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ऐली पैली सखरिया री पाल 

ऐली पैली सखरिया री पाल 

पालां रे तंबू तांणिया रे 

जाये वनी रे बापाजी ने कैजो, के हस्ती तो सामां मेल जो जी 

नहीं म्हारां देसलड़ा में रीत, भंवर पाला आवणों जी 

जाय बनी रा काकाजी ने कैजो 

घुड़ला तो सांमां भेजजो जी 

नहीं म्हारे देशां में रीत, भेवर पाला चालणों जी 

जाय बनीरा माता जी ने कैजो 

सांमेला सामां मेल जो जी 

नहीं म्हारे देशलड़ां में रीत 

भंवर पाला आवणों री 

✍......... महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम 9610969896


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म्हें थांने पूछां म्हारी धीयड़ी 

म्हें थांने पूछां म्हारी धीयड़ी 

म्हें थांने पूछां म्हारी बालकी 

इतरो बाबा जी रो लाड़, छोड़ र बाई सिध चाल्या। 

मैं रमती बाबो सो री पोल 

मैं रमतो बाबो सारी पोल 

आयो सगे जी रो सूबटो, गायड़मल ले चाल्यो। 

 

म्हें थाने पूंछा म्हारी बालकी 

म्हें थाने पूंछा म्हारी छीयड़ी 

इतरों माऊजी रो लाड़, छोड़ र बाई सिध चाल्या। 

 

आयो सगे जी रो सूबटो 

हे, आयो सगे जी रो सूबटो 

म्हे रमती सहेल्यां रे साथ, जोड़ी रो जालम ले चाल्यो। 

 

हे खाता खारक ने खोपरा 

रमता सहेलियां रे साथ 

मेले से हंसियों लेइ चाल्यों 

हे पाक्या आवां ने आबंला 

हे पाक्यां दाड़म ने दाख 

म्लेइ ने फूटर मल वो चाल्यो 

 

म्हें थाने पूंछा म्हारी धीयड़ी 

इतरों बापा जी रो लाड़, छोड़ने बाई सिध चाल्यो। 

 ✍......... महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम 9610969896


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झालो अलगियों तो ऐयूं जालो मांए

 झालो अलगियों तो ऐयूं जालो मांए 

के धिया बाई सा रो पीवरियो तो एयूं मीडक मांए 

सासूरियूं तो लीन्यूं नजरा मांए 

बाइसा रो बापा जी तो रेग्या मीडंक भांए 

ससुरा जी तो लीन्या नजरां मांए 

सासू जी ने लीवों नजरां मांए। 

बाई री साथणियां तो रैगी माड़क मांय 

नणदल बाई सा ने लेवो नजरां मांए। 

✍......... महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम 9610969896


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 बनी ! थूंई मत जाणे बना सा ऐकला रै 

बनी ! थूंई मत जाणे बना सा ऐकला रै 

झमकू ! थूंई मत जाणे "राइवर" ऐकला रै! 

साथे चूड़ीदार, चौपदार, हाकिम ने हवालदार 

कागदियों से कांमदार, काका ऊभा किल्लेदार 

भौमा ऊबा मज्जादार, सखाया सब लारोलार 

फूल बिखौरे गजरों गंधियों रै 

बनी थूंई मत जाणे बनासा एकला रै 

✍......... महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम 9610969896


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म्हारों बालूड़ों ग्यो तो सासरे 

म्हारों बालूड़ों ग्यो तो सासरे, 

काईं काईं लायो रे वीरा डायजिये ... 

 लाड़ी आयो ने अनुअर डायजिये ... 

बेड़ो लायो ने थाली डायजिये ... 

 लोटो लायो ने लोटी डायजिये ... 

सीरस लायो ने ढ़ाल्यो डायजिये ... 

 म्हारो बालूड़ो ग्यो तो सासरे ... 

 काईं काईं लायो रे वीरा डायजिये ... । 

✍......... महेन्द्र आल, देवासी युवा टीम 9610969896

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म्हने अंापणे देवासियां रे ब्याव रे टाइम लुगाइयों द्वारा गांवता मधुर गीत बहुत ही सुहावणा लागे है। ईं कारण अे आंपणा लोक गीत म्हें म्हारे अंदाज सूं लिख्या है, अगर इणरै मांइनें कठेई कोई भूल वैगी वैतो माफ करज्यों अर म्हारे ब्लाॅग रे कमेन्ट बाॅक्स रे माइनें जरूर लिखज्यों, जिणा म्हूं मारी भूल ने सूधार सकूं। आप सगळा ने महेन्द्र आल री तरफ सूं राम राम सा।