व्यग्ंयपरक चीनी पाखंड पर कविता
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Kavi - Kamal Khichar & M. P. Dewasi |
हम नर है ऋषि धरा के तपन प्रचंड हमारा है।
हिमालय के दृग-षिखरों से ऊँचा गौरव चमकता हमारा है।
चीनी लोगों के झुठे-पांखडों ने फिर मातृभुमि को ललकारा है।
सुन ले जिनपिंग अधर मुस्कान से, हमें मां भारती का सहारा है।
किसने कहा हमें तुमसे नहीं लड़ना, हम फिर कुरूक्षेत्र में आयेगें।
सियाचीन के विषालकाय खण्डहरों पर, लहराता तिरंगा फहरायेगें।
भुल हुई थी सन पैसठ में, नेहरू तेरी कुतिल चालों से भुलकर बैठे।
माँ भारती का यषोगान, क्षण भर में धुल चटा बैठे।
हम सीखें वक्त की पैणी धार से, तुझे मेरी धरा हराना है।
जय हिन्द के अलक्षित नारों से, तीर सटीक तरकष में पिरौना है।
शर में ही वासित होती सम्प्रभुता की लहराती युग धारा।
याद रखन जिनपिंग, सच पूछे तो भारत कभी नहीं रण में हारा।
इतिहासकारों की झुठी कलमों ने, भारत को किसी का गुलाम बनाया है।
कभी पराधीन अकबर को भी राणा से महान बताया है।
हम लिखते इतिहास धधकती पौरूष ज्वाला से, कलम चलना रूक जाती है।
बस चमकते तेजस सामथ्र्य के आगे, पत्थरों से बनी राषियां भी हार मान लेती जाती है।
भभक रही ज्वाला तेरे दिलों में, भारत पर कब्जा जमाने की।
याद करले समर हल्दीघाटी का, वह लड़ाई भी किसी जमाने की।
हमारी पोषित मिट्टी का प्रतिफल चीनी माल बाजारों में बिकता है।
पूर्वजों के प्राचीन रेषम मार्ग का, तेरा समर्थ किनारा हिन्द से लगता है।
पाक धुलचट्टी बना रणक्षेत्र में, हमें मिट्टी की सुगन्ध प्यारी है।
पौरूष रथ चलाये विजयगाथा का, हाडी की जीत-मेघा न्यारी है।।
हिमालय के दृग-षिखरों से ऊँचा गौरव चमकता हमारा है।
चीनी लोगों के झुठे-पांखडों ने फिर मातृभुमि को ललकारा है।
सुन ले जिनपिंग अधर मुस्कान से, हमें मां भारती का सहारा है।
किसने कहा हमें तुमसे नहीं लड़ना, हम फिर कुरूक्षेत्र में आयेगें।
सियाचीन के विषालकाय खण्डहरों पर, लहराता तिरंगा फहरायेगें।
भुल हुई थी सन पैसठ में, नेहरू तेरी कुतिल चालों से भुलकर बैठे।
माँ भारती का यषोगान, क्षण भर में धुल चटा बैठे।
हम सीखें वक्त की पैणी धार से, तुझे मेरी धरा हराना है।
जय हिन्द के अलक्षित नारों से, तीर सटीक तरकष में पिरौना है।
शर में ही वासित होती सम्प्रभुता की लहराती युग धारा।
याद रखन जिनपिंग, सच पूछे तो भारत कभी नहीं रण में हारा।
इतिहासकारों की झुठी कलमों ने, भारत को किसी का गुलाम बनाया है।
कभी पराधीन अकबर को भी राणा से महान बताया है।
हम लिखते इतिहास धधकती पौरूष ज्वाला से, कलम चलना रूक जाती है।
बस चमकते तेजस सामथ्र्य के आगे, पत्थरों से बनी राषियां भी हार मान लेती जाती है।
भभक रही ज्वाला तेरे दिलों में, भारत पर कब्जा जमाने की।
याद करले समर हल्दीघाटी का, वह लड़ाई भी किसी जमाने की।
हमारी पोषित मिट्टी का प्रतिफल चीनी माल बाजारों में बिकता है।
पूर्वजों के प्राचीन रेषम मार्ग का, तेरा समर्थ किनारा हिन्द से लगता है।
पाक धुलचट्टी बना रणक्षेत्र में, हमें मिट्टी की सुगन्ध प्यारी है।
पौरूष रथ चलाये विजयगाथा का, हाडी की जीत-मेघा न्यारी है।।
यहां शीष पतझड़ बनते, आजादी की प्रभात वेला में।
फुट पड़ता तिरंगा सावन झरने-सम, चाहे मंडराये छितर काल वेला में।
रग-रग में रक्त बहता, ड्रेगन नाषपथ तांडव करने में।
व्यग्ंय के निर्जीव बाणों से, सार रणक्षेत्र संघात करने में।
कभी नहीं हारे, कभी नहीं रूके, जिनपिंग की कुटिल नीति से।
कभी नहीं हासिल कर पायेगा, गौरव ज्ञान का, तु हारा छल-धीति से।
हम महाभारत का पाठ पढते, सूरज की रंजक किरणों से।
उठाया हाथ मातृभुमि पर निचोड़ कर रखेगें तेरी लाष तीखें शरों से।
हम डरते नहीं, तेरी आँखमिचैली नंगी चालों से।
डरते केवल हम है पुरखों की आदर्ष पगडंडी से।
हम समर्थ है मानवता के गुण से, तुझे ये गुण त्याज्य है।
हम भाजक है सभ्यता है, तु दुर्गुणों का भाज्य है।
संसाधनों से पूर्ण है भारत, चीन जन्मान्तर याचक है।
हम शांति के सागर है तु विषधर ग्रंथिया पोषक है।
इस सदी के नायक है हम, जगत झुठा पाखंड है तेरा।
स्वतंत्रता के इन्द्ररथ पर, वृद्धिषील रहे देष मेरा।
नमन करते हम उन वीरों को जिसने हमें कौषलवान बनाया।
ब्राह्मड के कोने-कोने में, मां भारती का आँचल लहराया।
हम गौरव है हम सौरभ है, चीन तुझे रण में हरायेगें।
न मरा तु तलवार से, एटमबम से उड़ायेगें।
मैं भारत मां का प्यारा, माटी का गुणगान करता हूँ।
आबाद रहे सम्प्रभु राष्ट्र, कलम का जादू बिखेरता हूँ।
फुट पड़ता तिरंगा सावन झरने-सम, चाहे मंडराये छितर काल वेला में।
रग-रग में रक्त बहता, ड्रेगन नाषपथ तांडव करने में।
व्यग्ंय के निर्जीव बाणों से, सार रणक्षेत्र संघात करने में।
कभी नहीं हारे, कभी नहीं रूके, जिनपिंग की कुटिल नीति से।
कभी नहीं हासिल कर पायेगा, गौरव ज्ञान का, तु हारा छल-धीति से।
हम महाभारत का पाठ पढते, सूरज की रंजक किरणों से।
उठाया हाथ मातृभुमि पर निचोड़ कर रखेगें तेरी लाष तीखें शरों से।
हम डरते नहीं, तेरी आँखमिचैली नंगी चालों से।
डरते केवल हम है पुरखों की आदर्ष पगडंडी से।
हम समर्थ है मानवता के गुण से, तुझे ये गुण त्याज्य है।
हम भाजक है सभ्यता है, तु दुर्गुणों का भाज्य है।
संसाधनों से पूर्ण है भारत, चीन जन्मान्तर याचक है।
हम शांति के सागर है तु विषधर ग्रंथिया पोषक है।
इस सदी के नायक है हम, जगत झुठा पाखंड है तेरा।
स्वतंत्रता के इन्द्ररथ पर, वृद्धिषील रहे देष मेरा।
नमन करते हम उन वीरों को जिसने हमें कौषलवान बनाया।
ब्राह्मड के कोने-कोने में, मां भारती का आँचल लहराया।
हम गौरव है हम सौरभ है, चीन तुझे रण में हरायेगें।
न मरा तु तलवार से, एटमबम से उड़ायेगें।
मैं भारत मां का प्यारा, माटी का गुणगान करता हूँ।
आबाद रहे सम्प्रभु राष्ट्र, कलम का जादू बिखेरता हूँ।
कवि - कमल खीचड़, लालजी की डुंगरी, +91 7073247475
प्रेषक - महेन्द्र पी देवासी, जालेरा कलां, +91 9610969896
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