गुरुवार, 10 अगस्त 2017

व्यग्ंयपरक चीनी पाखंड पर कविता

Kavi - Kamal Khichar & M. P. Dewasi
  हम नर है ऋषि धरा के तपन प्रचंड हमारा है।
हिमालय के दृग-षिखरों से ऊँचा गौरव चमकता हमारा है।
चीनी लोगों के झुठे-पांखडों ने फिर मातृभुमि को ललकारा है।
सुन ले जिनपिंग अधर मुस्कान से, हमें मां भारती का सहारा है।


किसने कहा हमें तुमसे नहीं लड़ना, हम फिर कुरूक्षेत्र में आयेगें।
सियाचीन के विषालकाय खण्डहरों पर, लहराता तिरंगा फहरायेगें।
भुल हुई थी सन पैसठ में, नेहरू तेरी कुतिल चालों से भुलकर बैठे।
माँ भारती का यषोगान, क्षण भर में धुल चटा बैठे।


हम सीखें वक्त की पैणी धार से, तुझे मेरी धरा हराना है।
जय हिन्द के अलक्षित नारों से, तीर सटीक तरकष में पिरौना है।
शर में ही वासित होती सम्प्रभुता की लहराती युग धारा।
याद रखन जिनपिंग, सच पूछे तो भारत कभी नहीं रण में हारा।


इतिहासकारों की झुठी कलमों ने, भारत को किसी का गुलाम बनाया है।
कभी पराधीन अकबर को भी राणा से महान बताया है।
हम लिखते इतिहास धधकती पौरूष ज्वाला से, कलम चलना रूक जाती है।
बस चमकते तेजस सामथ्र्य के आगे, पत्थरों से बनी राषियां भी हार मान लेती जाती है।

भभक रही ज्वाला तेरे दिलों में, भारत पर कब्जा जमाने की।
याद करले समर हल्दीघाटी का, वह लड़ाई भी किसी जमाने की।
हमारी पोषित मिट्टी का प्रतिफल चीनी माल बाजारों में बिकता है।
पूर्वजों के प्राचीन रेषम मार्ग का, तेरा समर्थ किनारा हिन्द से लगता है।


पाक धुलचट्टी बना रणक्षेत्र में, हमें मिट्टी की सुगन्ध प्यारी है।
पौरूष रथ चलाये विजयगाथा का, हाडी की जीत-मेघा न्यारी है।।
यहां शीष पतझड़ बनते, आजादी की प्रभात वेला में।
फुट पड़ता तिरंगा सावन झरने-सम, चाहे मंडराये छितर काल वेला में।


रग-रग में रक्त बहता, ड्रेगन नाषपथ  तांडव करने में।
व्यग्ंय के निर्जीव बाणों से, सार रणक्षेत्र संघात करने में।
कभी नहीं हारे, कभी नहीं रूके, जिनपिंग की कुटिल नीति से।
कभी नहीं हासिल कर पायेगा, गौरव ज्ञान का, तु हारा छल-धीति से।


हम महाभारत का पाठ पढते, सूरज की रंजक किरणों से।
उठाया हाथ मातृभुमि पर निचोड़ कर रखेगें तेरी लाष तीखें शरों से।
हम डरते नहीं, तेरी आँखमिचैली नंगी चालों से।
डरते केवल हम है पुरखों की आदर्ष पगडंडी से।


हम समर्थ है मानवता के गुण से, तुझे ये गुण त्याज्य है।
हम भाजक है सभ्यता है, तु दुर्गुणों का भाज्य है।
संसाधनों से पूर्ण है भारत, चीन जन्मान्तर याचक है।
हम शांति के सागर है तु विषधर ग्रंथिया पोषक है।


इस सदी के नायक है हम, जगत झुठा पाखंड है तेरा।
स्वतंत्रता के इन्द्ररथ पर, वृद्धिषील रहे देष मेरा।
नमन करते हम उन वीरों को जिसने हमें कौषलवान बनाया।
ब्राह्मड के कोने-कोने में, मां भारती का आँचल लहराया।


हम गौरव है हम सौरभ है, चीन तुझे रण में हरायेगें।
न मरा तु तलवार से, एटमबम से उड़ायेगें।
मैं भारत मां का प्यारा, माटी का गुणगान करता हूँ।
आबाद रहे सम्प्रभु राष्ट्र, कलम का जादू बिखेरता हूँ।

कवि - कमल खीचड़, लालजी की डुंगरी, +91 7073247475
प्रेषक - महेन्द्र पी देवासी, जालेरा कलां, +91 9610969896
 
 



शुक्रवार, 26 मई 2017

S.R. Dewasi with Me
।। हमारे घर एक नन्हा सा फरिश्ता आ गया है ।।
💐
प्रिय बंधुओ ,
आज मैं अपनी ख़ुशी आपसे बाँटना चाहता हूँ.। बहुत दिनों के बाद हमारे घर में एक नए मेहमान का आगमन हुआ है।
मेरे कुल के नए सदस्य को आपके आशीर्वाद की आवश्यकता है, आपके आशीर्वाद से ही उसके सुखी और निष्कंटक जीवन का रास्ता और प्रशस्त होगा।
मेरे प्यारे बड़े भाई सांवलाराम जी देवासी को प्रथम पुत्र रत्न प्राप्ति उपरांत पिता बनने पर
बहुत-बहुत बधाई एवं आज शुक्रवार का दिन इनके जीवन मे यादगार हो गया। 
भैया S. R. Dewasi को समर्पित
फ़लक के तारों को देख जागती थी तमन्ना 
 कोई एक सितारा हमारे आँगन में भी उतरे।
उतर आया है पूरा चाँद हमारी बगिया में 
और रोशन हो गया है हमारा आँगन उसकी चांदनी से।।
..... महेन्द्र पी देवासी

रविवार, 16 अप्रैल 2017

मेरे प्यारे बन्धुओं,
परमपिता परमेष्वर की कृपा से मेरे छोटे भाई मनीष देवासी पुत्र श्री प्रभुरामजी आल, जालेरा कलां का विवाह विक्रम संवत् 2074 वैषाख सुद 2 शुक्रवार दिनांक 28.04.2017 की पावन बेला पर होना सुनिष्चित हुआ है, इस मांगलिक बेला पर आप सहपरिवार वर-वधु को शुभाषिष प्रदान कर हमें अनुग्रहित करें। वहीं आषीर्वाद समारोह एवं प्रीतिभोज का आयोजन शुक्रवार दिनांक 05.05.2017 को रखा है, कृपया जरूर पधारें।
निमंत्रक:- महेन्द्र प्रभुराम देवासी, 9610969896

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

 मेरा बचपन 


बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥

चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?

ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥

किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥

रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे॥

मैं रोया, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया।
झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया॥

वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं मतवाला बड़ा हुआ।
लुटा हुआ, कुछ ठगा हुआ-सा दौड़ द्वार पर खड़ा हुआ॥

मिला, खोजता था जिसको हे बचपन! ठगा दिया तूने।
अरे! जवानी के फंदे में मुझको फँसा दिया तूने॥

किंतु यहाँ झंझट है भारी युद्ध-क्षेत्र संसार बना।
चिंता के चक्कर में पड़कर जीवन भी है भार बना॥

आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शांति।
व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति॥

वह भोली-सी मधुर सरलता वह प्यारा जीवन निष्पाप।
क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का संताप?

✍........महेन्द्र पी. आल, 9610969896

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

मातृ-पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ

हिंदू धर्म में माता को भगवान का रूप माना जाता है। एक शिशु जो कुछ भी सीखता है सबसे पव्हले अपने माता पिता से सीखता है। ना सिर्फ हिन्दू धर्म में बल्कि विश्व के हर क्षेत्र हर समाज और हर राज्य में माता पिता को सम्मान दिया जाता है। 
हिन्दू परिवारों में यह आम बात है कि बच्चे अपने माता पिता के पैरों को छूकर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। कुछ बच्चे तो अपने माता पिता के पैर हर दिन सवेरे छूकर आशीर्वाद लेते हैं ऐसा करना भी चाहिए।
हिन्दू धर्म में माता पिता की पूजा रिवाजों का एक हिस्सा है। माँ को बच्चों का पहला गुरु माना जाता है और पिता को दूसरा माना जाता है।
                      इसीलिए तो कहा जाता है –  माताः पिताः गुरू दैवं 
 यह संस्कृत का एक प्रसिद्ध हिन्दू बोल हैं जिसमें माता पिता को शिक्षक का दर्ज़ा बताया गया है। यह वाक्य वेदों और पुराणों से लिया गया है जिसमें माता पिता को सम्मान दिया गया है।
माता पिता हमारा ख्याल रखते है बचपन से लेकर बड़े होने तक। बिना कोई आस के वो हमें पढ़ाते है, लिखाते हैं और साथ ही दिन रात हमारी चिंता करते हैं। हमारा कर्तव्य होता है कि हम अपने माता पिता का सम्मान करें और साथ ही उनका ख्याल रखें।
उनका भी एक ऐसा समय ता है जब उन्हें हमारी जरूरत होती है वो है उनके बुढ़ापे के समय। ऐसे समय में हमें उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
इस जीवन में माता पिता से बढ़ कर कोई नहीं। जियो तो माता पिता के लिए, कुछ बड़ा बनो तो माता पिता के सम्मान के लिए।
जिसने की मां बाप की सेवा तो उसका बेड़ा पार है।
अरे जिसने दुःखाई आत्मा, वो तो डुबता मझधार है।
अर मात-पिता-परमात्मा नहीं मिलते दुजी बार ह।।

इण दुनिया में मां - बाप भगवान केविजे।

इसी के साथ मेरी तरफ से आप सभी बन्धुओं को मातृ-पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

✍........महेन्द्र आल  9610969896, मनीष आल 8696445280

 

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

बच्चो के लिए जरूरी हैं अच्छे संस्कार

               बन्धुओं ये सन्देष पढने मे भले ही आपका ध्यान आकर्षित न कर पाये, मगर इस सन्देष पर गौर किया जाये तो बहुत कुछ समझने एवं परखने लायक है।
                  अपने समाज में आज भी खुलकर बच्चों को आगे आने को मौका नहीं दिया जाता है, इसी कारण आज भी अपना समाज अन्य समाज से थोड़ा पिछड़ रहा है, इसलिए हमारा मानना है कि आप अपने बच्चों को इस माहौल से बाहर लाए एवं उनकों अपने अन्दर छीपी प्रतिभा को निखारने दें। खास बात यह है कि लड़का-लड़की में भेद न समझकर दोनों को एक जैसा माहौल दें।
                बच्चो की परवरिश में माता-पिता की भूमिका उस किसान की तरह होती है जो बीज के फलने-फूलने के लिए सही माहौल तैयार करता है, उसकी खाद पानी की जरूरतों को पूरा करता है। पेरेंट्स यह तो चाहते हैं कि उनका लाडला-लाडली अच्छे इंसान बने, लेकिन यह भूल जाते हैं कि इसकी नींव उन्हें ही रखनी है अपने परवरिश के तारीके से। अगर आप भी अपने बच्चो में अच्छे संस्कार व मूल्य डालना चाहे हैं, तो उसे तनावमुक्त व सकारात्मक माहौल दें, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे किसी बंधन में बंधने के बजाय अपने तरीके से आगे बढने दें। बच्चो को आत्मनिर्भर बनाये, ताकि बडा होकर वो अकेला ही दुनिया का सामना कर सकें, उसे आपका हाथ थामने की जरूरत ना पडे, लेकिन यह बातें कहने में जितनी आसान लगती हैं इन पर अमल करना उतना ही मुश्किल है, चलिए हम आपको बताते हैं किस तरह आप बच्चो की परवरिश के मुश्किल काम को आसान बना सकते हैं?
प्यार से समझाएं - बच्चो के नखारे दिखाने या किसी चीज के लिए जिद करने पर आमतौर पर माता-पिता डांटते-फटकारते हैं, लेकिन इसका बच्चो पर उल्टा ही असर होता है। आप जोर से चिल्लाते हैं, तो बच्चा भी तेज आवाज में रोने व चिखने चिल्लने लगता है। ऐसे में आपका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है, लेकिन इस स्थिति में गुस्से से काम बिगड सकता है। अतरू शांत दिमाग से बच्चों को समझाने की कोशिश की वो जो कर रहा है वो गलत है।
कहें ना - बच्चो से प्यार करने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप उसकी हर गैरजरूरी मांगें पूरी करें। यदि आप चाहते हैं कि आगे चलकर आपका बच्चा अनुशाशित बने तो अभी से उसकी गलत मांगों को मानना छोड दें।
बच्चो की खूबियों को पहचानें - हर बच्चा अपने आप में अलग और अनोखा होता है। हो सकता है, आपके पडोसी का बच्चा पढाई-लिखाई में अव्वल हो और आपका बच्चा खेलकूद में। ऐसे में कम नंबर लाने पर उसकी तुलना दूसरे बच्चो से करके उसका आत्मविश्वास कमजोर ना करें, बल्कि स्पोट्र्स में मैडल जीत कर लाने पर उसकी प्रशंसा करें और पढाई में भी ध्यान देने के लिए कहें।
मर्जी से लेने दें फैसला - माना बच्चो को सही-गलत का फर्क समझाना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप उसे अपनी मर्जी से कोई फैसला ना लेने दें। ऐसा करके आप उसकी निर्णय की क्षमता को कमजोर कर रहे हैं। यदि आप चाहते हैं कि भविष्य में आपका बच्चा अपने फैसले खुद लेने में सक्षम बने, तो अभी से कुछ छोटे-मोटे फैसले उसे खुद लेने दें।
खुद में लाए बदलाव - यदि आप अपने बच्चो को अच्छे संस्कार देना चाहते हैं तो पहले अपनी बुरी आदतों को बदलें, क्योंकि बच्चा वही करता है जो अपने आसपास देखता है, यदि वो अपने माता-पिता को झगडते देखता है उसका व्यवहार भी झगडालु और नकारात्मक हो जाता हैं। इसलिए जरूरी है कि आप अपनी बुरी आदतों को त्याग दें।
सकारात्मक तरीके से बात करें - माता-पिता जो भी कहते हैं उसका बच्चो पर गहरा असर होता है। अतरू अपने बच्चों से कुछ भी कहते समय इस बात का खास ध्यान रखें कि आपकी बातों का उस पर सकारात्मक असर हो।
             बन्धुओं में हम इस सन्देश के जरिये बस हम आपको इतना ही कहना चाहते है कि अपने समाज के भविष्य (बच्चों) को सक्षम बनाने के लिए पढाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी भाग लेने के लिए प्रेरित करें और अगर आप सक्षम है तो अपने आस-पास के समाज बंधओं को भी अच्छी सलाह देकर अपने समाज का नवनिर्माण जरूर करें।

संकलनकर्ता - जेताराम खोभला 98673 25011
प्रकाषक  -  महेन्द्र आल 9610969896