"अपने आप को जानें और पहचानें"
हमारी ज्यादा रूचि सिर्फ दूसरों को जानने
और अपनी जान पहचान बढ़ाने में ही रहती है, खुद अपने को जानने में नहीं रहती।
हमारी यह भी कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक लोग हमें जानें, हम लोकप्रिय
हों पर यह कोशिश हम जरा भी नहीं करते कि हम खुद के बारे में जानें कि हम
क्या हैं, क्यों हैं, क्यों पैदा हुए हैं, किसलिए पैदा हुए हैं। हम हमारे
बारे में जो कुछ जानते हैं वह दरअसल हमारे खुद के बारे में जानना समझते हैं
जबकि यह एक गलतफहमी है क्योकि जो जो 'हमारा' है वह 'हम' नहीं हैं, यहां तक
की हमारा 'शरीर' भी दरअसल 'हम' नहीं बल्कि 'हमारा' है। इस स्थिति से हमारा
बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। हमारा जीवन व्यतीत होता जा रहा है और हमें
अभी तक यहीं मालूम नहीं है कि हम क्या हैं, क्यों है आदि। हमारा पूरा ध्यान
बाहरी धन सम्पदा, परिवार, मकान, दुकान, घर गृहस्थी पर लगाये रहते हैं, और
जो असली हम हैं उसे याद तक नही करते। इससे हम बाहर बाहर भले ही सम्पन्न
हों, पर भीतर से दरिद्र होते जा रहें हैं। इसको समझने के लिए एक बोध कथा
को देखते हैं।
"एक
बहुत बड़े भवन में आग लग गई और तेज हवा के कारण देखते-देखते आग पूरे भवन
में फ़ैल गई। आग को बुझाने के लिए घर के लोग और पड़ोसी मिलकर सामान निकलने
लगे। मकान मालिक के परिवार का हाल बेहाल था और उन्हें कुछ सूझ नही रहा था।
सामान निकालने वालों ने पूछा की कुछ और अंदर तो नही रह गया है, हमें बता
दो। घर के लोग बोले -हमारे होश ठिकाने नहीं है, कृपया आप ही लोग देख लें।
थोड़ी देर में आग पर काबू पाया गया तो घर का मालिक दिखाई नही दे रहा था जबकि
आग लगने के पहले घर में ही सो रहा था। घर वाले रोने पीटने लगे। सबने
मिलकर जो जो हमारा था वह तो बचा लिया पर इसका ज्ञान किसी को नही था की मकान
मालिक अंदर सो रहा है सो वह अंदर ही जल गया। ऐसा ही हमारे बारे में हो
रहा है। हम समान बचाने में लगे हुए हैं और खुद का हमें पता नही।"
✍........महेन्द्र आल, 9610969896
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