"आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं है"

आत्महत्या का अर्थ जान बूझकर किया गया आत्मघात होता है। वर्तमान युग में यह एक गर्हणीय कार्य समझा जाता है, परंतु प्राचीन काल में ऐसा नहीं था; बल्कि यह निंदनीय की अपेक्षा सम्मान्य कार्य समझा जाता था। हमारे देश की सतीप्रथा तथा युद्धकालीन जौहर इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। मोक्ष आदि धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर भी लोग आत्महत्या करते थे। आत्महत्या के लिए अनेक उपायों का प्रयोग किया जाता है जिनमें मुख्य हैं: फांसी लगाना, डूबना, गला काट डालना, तेजाब आदि द्रव्यों का प्रयोग, विषपान तथा गोली मार लेना। उपाय का प्रयोग व्यक्ति की निजी स्थिति तथा साधन की सुलभता के अनुसार किया जाता है।
कारण कुछ भी
हो, त्महत्या किसी भी तरीके से उचित नही माना जा सकता। यद्धपि आम तौर पर से
आत्महत्या करना कायरता पूर्ण काम माना जाता है, पर कुछ लोगो कि नजर में
आत्महत्या करना बहादुरी का भी काम है, लेकिन मैं कहना चाहूँगा यह बहादुरी
वैसी नहीं है जैसी कारगिल के मोर्चे पर हमारे देश के वीर सैनिकों ने
प्रदर्शित की। बहादुरी वह होती है जो एक सैनिक या सेनापति की विशेषता होती
है और बहादुरी डाकू सरदार कि भी होती है वर्ना वह डाकू दल का सरदार बन ही
नहीं सकता था। फर्क इतना ही होता है कि सैनिक बहादुरी का सही उपयोग करता है
और डाकू सरदार बहादुरी का दुरूपयोग करता है, साथ ही कायर भी होता है वरना
जंगलों में छिपते फिरने कि क्या जरूरत ? ऐसे ही आत्महत्या करने वाला एक
सिक्के के दो पहलुओं की तरह कायर भी होता है और बहादुर भी।
आत्महत्या करने का कारण जो भी हो पर हर सूरत में आत्महत्या करना गलत काम है। आत्महत्या करने मरने से कर्मगति पीछा थोड़े ही छोड़ देगी बल्कि जीवन को ठुकराने और आत्महत्या करने का एक पाप और बढ़ जाएगा। मरने से कुछ हासिल नही होता। जरा यह भी सोचना चाहिए कि कैसी भी समस्या हो, विवेक, धैर्य और साहस से काम लेने कि जरूरत होती है। अगर इन तीनों मित्रों का साथ न छोड़ा जाए तो कैसा भी संकट हो अंत में हम विजयी हो ही जायेंगे। समस्या का समाधान कर ही लेंगे। यह भी यद् रखें ईश्वर भी उन्हीं कि मदद करता है जो अपनी मदद आप खुद करते हैं।
आत्महत्या करने का कारण जो भी हो पर हर सूरत में आत्महत्या करना गलत काम है। आत्महत्या करने मरने से कर्मगति पीछा थोड़े ही छोड़ देगी बल्कि जीवन को ठुकराने और आत्महत्या करने का एक पाप और बढ़ जाएगा। मरने से कुछ हासिल नही होता। जरा यह भी सोचना चाहिए कि कैसी भी समस्या हो, विवेक, धैर्य और साहस से काम लेने कि जरूरत होती है। अगर इन तीनों मित्रों का साथ न छोड़ा जाए तो कैसा भी संकट हो अंत में हम विजयी हो ही जायेंगे। समस्या का समाधान कर ही लेंगे। यह भी यद् रखें ईश्वर भी उन्हीं कि मदद करता है जो अपनी मदद आप खुद करते हैं।
✍........महेन्द्र आल, 9610969896
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें