"सिर्फ कथनी ही नही, करनी भी"

प्रिये मित्रों, कुछ लोग ऐसे
होते हैं जो विचार तो अच्छे रखते हैं पर उन पर अमल नही करते या कर नही
पाते। यूँ अच्छे विचार रखना अच्छा तो होता है पर जब तक अमल में न लिया जाए
तब तक विचार फलित नही होता, निष्काम रहना है। मात्र रोटी का ख्याल करते
रहने से भूख मिटती नहीं, बढ़ जाती है। भूख मिटाने के लिए रोटी खाना जरूरी
होता है। तैरने की विधि पुस्तक में पढ़ लेने और जान लेने से तैरना नही आ
सकता बल्कि तैरने का प्रयत्न करने से ही तैरना आता है। मात्र विचार
निष्प्राण है, विचार को अमल में लेना ही फलदायी होता है। ‘मन में जो भव्य
विचार या शुभ योजना उत्पन्न हो, उसे तुरंत कार्यरूप मे परिणत कर डालिए,
अन्यथा वह जिस तेजी से मन में आया, वैसे ही एकाएक गायब हो जाएगा और आप उस
सुअवसर का लाभ न उठा सकेंगे।’ ‘सोचो चाहे जो कुछ, पर कहो वही, जो तुम्हें
करना चाहिए।’ जो व्यक्ति मन से, वचन से, कर्म से एक जैसा हो, वही पवित्र और
सच्चा महात्मा माना जाता है। कथनी और करनी सम होना अमृत समान उत्तम माना
जाता है। जो काम नहीं करते, कार्य के महत्व को नहीं जानते, कोरा चिंतन ही
करते हैं, वे निराशावादी हो जाते हैं। कार्य करने से हम कार्य को एक स्वरूप
प्रदान करते हैं। ‘काल करे सो आज कर’ में भी क्रियाशीलता का संदेश छिपा
है। जब कोई अच्छी योजना मन में आए, तो उसे कार्यान्वित करने में देरी नहीं
करनी चाहिए। अपनी अच्छी योजनाओं में लगे रहिए, जिससे आपकी प्रवृत्तियां शुभ
कार्यों में लगी रहें। कथनी और करनी में सामंजस्य ही आत्म-सुधार का
श्रेष्ठ उपाय है।
✍........महेन्द्र आल, 9610969896
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