मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

मातृ-पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ

हिंदू धर्म में माता को भगवान का रूप माना जाता है। एक शिशु जो कुछ भी सीखता है सबसे पव्हले अपने माता पिता से सीखता है। ना सिर्फ हिन्दू धर्म में बल्कि विश्व के हर क्षेत्र हर समाज और हर राज्य में माता पिता को सम्मान दिया जाता है। 
हिन्दू परिवारों में यह आम बात है कि बच्चे अपने माता पिता के पैरों को छूकर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। कुछ बच्चे तो अपने माता पिता के पैर हर दिन सवेरे छूकर आशीर्वाद लेते हैं ऐसा करना भी चाहिए।
हिन्दू धर्म में माता पिता की पूजा रिवाजों का एक हिस्सा है। माँ को बच्चों का पहला गुरु माना जाता है और पिता को दूसरा माना जाता है।
                      इसीलिए तो कहा जाता है –  माताः पिताः गुरू दैवं 
 यह संस्कृत का एक प्रसिद्ध हिन्दू बोल हैं जिसमें माता पिता को शिक्षक का दर्ज़ा बताया गया है। यह वाक्य वेदों और पुराणों से लिया गया है जिसमें माता पिता को सम्मान दिया गया है।
माता पिता हमारा ख्याल रखते है बचपन से लेकर बड़े होने तक। बिना कोई आस के वो हमें पढ़ाते है, लिखाते हैं और साथ ही दिन रात हमारी चिंता करते हैं। हमारा कर्तव्य होता है कि हम अपने माता पिता का सम्मान करें और साथ ही उनका ख्याल रखें।
उनका भी एक ऐसा समय ता है जब उन्हें हमारी जरूरत होती है वो है उनके बुढ़ापे के समय। ऐसे समय में हमें उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
इस जीवन में माता पिता से बढ़ कर कोई नहीं। जियो तो माता पिता के लिए, कुछ बड़ा बनो तो माता पिता के सम्मान के लिए।
जिसने की मां बाप की सेवा तो उसका बेड़ा पार है।
अरे जिसने दुःखाई आत्मा, वो तो डुबता मझधार है।
अर मात-पिता-परमात्मा नहीं मिलते दुजी बार ह।।

इण दुनिया में मां - बाप भगवान केविजे।

इसी के साथ मेरी तरफ से आप सभी बन्धुओं को मातृ-पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

✍........महेन्द्र आल  9610969896, मनीष आल 8696445280

 

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

बच्चो के लिए जरूरी हैं अच्छे संस्कार

               बन्धुओं ये सन्देष पढने मे भले ही आपका ध्यान आकर्षित न कर पाये, मगर इस सन्देष पर गौर किया जाये तो बहुत कुछ समझने एवं परखने लायक है।
                  अपने समाज में आज भी खुलकर बच्चों को आगे आने को मौका नहीं दिया जाता है, इसी कारण आज भी अपना समाज अन्य समाज से थोड़ा पिछड़ रहा है, इसलिए हमारा मानना है कि आप अपने बच्चों को इस माहौल से बाहर लाए एवं उनकों अपने अन्दर छीपी प्रतिभा को निखारने दें। खास बात यह है कि लड़का-लड़की में भेद न समझकर दोनों को एक जैसा माहौल दें।
                बच्चो की परवरिश में माता-पिता की भूमिका उस किसान की तरह होती है जो बीज के फलने-फूलने के लिए सही माहौल तैयार करता है, उसकी खाद पानी की जरूरतों को पूरा करता है। पेरेंट्स यह तो चाहते हैं कि उनका लाडला-लाडली अच्छे इंसान बने, लेकिन यह भूल जाते हैं कि इसकी नींव उन्हें ही रखनी है अपने परवरिश के तारीके से। अगर आप भी अपने बच्चो में अच्छे संस्कार व मूल्य डालना चाहे हैं, तो उसे तनावमुक्त व सकारात्मक माहौल दें, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे किसी बंधन में बंधने के बजाय अपने तरीके से आगे बढने दें। बच्चो को आत्मनिर्भर बनाये, ताकि बडा होकर वो अकेला ही दुनिया का सामना कर सकें, उसे आपका हाथ थामने की जरूरत ना पडे, लेकिन यह बातें कहने में जितनी आसान लगती हैं इन पर अमल करना उतना ही मुश्किल है, चलिए हम आपको बताते हैं किस तरह आप बच्चो की परवरिश के मुश्किल काम को आसान बना सकते हैं?
प्यार से समझाएं - बच्चो के नखारे दिखाने या किसी चीज के लिए जिद करने पर आमतौर पर माता-पिता डांटते-फटकारते हैं, लेकिन इसका बच्चो पर उल्टा ही असर होता है। आप जोर से चिल्लाते हैं, तो बच्चा भी तेज आवाज में रोने व चिखने चिल्लने लगता है। ऐसे में आपका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है, लेकिन इस स्थिति में गुस्से से काम बिगड सकता है। अतरू शांत दिमाग से बच्चों को समझाने की कोशिश की वो जो कर रहा है वो गलत है।
कहें ना - बच्चो से प्यार करने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप उसकी हर गैरजरूरी मांगें पूरी करें। यदि आप चाहते हैं कि आगे चलकर आपका बच्चा अनुशाशित बने तो अभी से उसकी गलत मांगों को मानना छोड दें।
बच्चो की खूबियों को पहचानें - हर बच्चा अपने आप में अलग और अनोखा होता है। हो सकता है, आपके पडोसी का बच्चा पढाई-लिखाई में अव्वल हो और आपका बच्चा खेलकूद में। ऐसे में कम नंबर लाने पर उसकी तुलना दूसरे बच्चो से करके उसका आत्मविश्वास कमजोर ना करें, बल्कि स्पोट्र्स में मैडल जीत कर लाने पर उसकी प्रशंसा करें और पढाई में भी ध्यान देने के लिए कहें।
मर्जी से लेने दें फैसला - माना बच्चो को सही-गलत का फर्क समझाना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप उसे अपनी मर्जी से कोई फैसला ना लेने दें। ऐसा करके आप उसकी निर्णय की क्षमता को कमजोर कर रहे हैं। यदि आप चाहते हैं कि भविष्य में आपका बच्चा अपने फैसले खुद लेने में सक्षम बने, तो अभी से कुछ छोटे-मोटे फैसले उसे खुद लेने दें।
खुद में लाए बदलाव - यदि आप अपने बच्चो को अच्छे संस्कार देना चाहते हैं तो पहले अपनी बुरी आदतों को बदलें, क्योंकि बच्चा वही करता है जो अपने आसपास देखता है, यदि वो अपने माता-पिता को झगडते देखता है उसका व्यवहार भी झगडालु और नकारात्मक हो जाता हैं। इसलिए जरूरी है कि आप अपनी बुरी आदतों को त्याग दें।
सकारात्मक तरीके से बात करें - माता-पिता जो भी कहते हैं उसका बच्चो पर गहरा असर होता है। अतरू अपने बच्चों से कुछ भी कहते समय इस बात का खास ध्यान रखें कि आपकी बातों का उस पर सकारात्मक असर हो।
             बन्धुओं में हम इस सन्देश के जरिये बस हम आपको इतना ही कहना चाहते है कि अपने समाज के भविष्य (बच्चों) को सक्षम बनाने के लिए पढाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी भाग लेने के लिए प्रेरित करें और अगर आप सक्षम है तो अपने आस-पास के समाज बंधओं को भी अच्छी सलाह देकर अपने समाज का नवनिर्माण जरूर करें।

संकलनकर्ता - जेताराम खोभला 98673 25011
प्रकाषक  -  महेन्द्र आल 9610969896
Jeta Ram Khobhala      Mahendra Aal

-: आपणों देवासी समाज :-

समाज की परिभाषा है बन्‍धु ही समाज का सच्‍चा निर्माता, सतम्‍भ एवं अभिन्‍न अंग है, बन्‍धु, समाज का सूक्ष्‍म स्‍वरूप और समाज, बन्‍धु का विशाल स्‍वरूप है, अत: बन्‍धु और समाज एक-दूसरे के पूरक तथा विशेष महात्‍वाकांक्षी है।

             समाज अच्छा हो तो चरित्र अच्छा होता है, हमें सामाजिक होना चाहिए, समाज ने हमे बहुत कुछ दिया ,  ऐसी बहुत सी बाते बातें हम प्रायः सुनते ही रहते हैं, हम ऐसा क्यों नहीं सुनते हैं की 'हमने समाज को कुछ दिया या हमने अपने  समाज मे  कुछ अच्छा किया,  इसका कहीं न कहीं कारण यह है की हम समाज की परिभाषा ही नहीं जानते, हमें अछे और बुरे समाज का ज्ञान ही नहीं है,  हम यह जानते हैं की समाज कुछ होता है लेकिन हम यह नहीं जानते की यह हमारे जीवन, हमारे चरित्र और फिर हमारे देश पर कैसे और क्या प्रभाव डालता है,  वैसे तो हममे  और आपमे बहुत सी परिभाषाएं ,हम किसी भी परिभाषा पर मनन करते हैं,  और अगर करते हैं तो क्या हम उसे अपने जीवन में उतारते हैं,  हम अक्सर इसे दूसरों पर थोप देते हैं, और कहते हैं कि क्या ये सिर्फ मेरी जिम्मेदारी है, या मैं अकेले क्या कर लूँगा, और या मैं ही अकेले क्यों करूँ,  जबकि एक अकेले भी बहुत कुछ कर सकता है हम सब पहले एक मनुष्य हैं फिर बाद मे और कुछ, हमे अपने समाज के अन्य लोगों के लिए भी कुछ सोचे, उनके लिए कुछ अवश्य करें, नही तो हम मनुष्य कहलाने के हक दार नही है, एक समाज का निर्माण मनुष्यों से होता है,अगर मनुष्यों का चरित्र, व्यवहार, रहन-सहन का स्तर ऊंचा होगा तो हम उस समाज को एक अच्छा और सशक्त समाज कह सकते हैं ,प्रत्येक समाज का एक अपना परिचय अवश्य होता है, जैसा समाज होगा उसका वैसा ही उसका परिचय होने के साथ-साथ उस समाज के व्यक्ति का व्यवहार करने का तरिका होगा, यह एक अलग बात है कि हर समाज मे कुछ अच्छे और कुछ बुरे लोग होते हैं; यह तो हमारे ऊपर निभर करता है कि हम उनमे से क्या है।

                      कितने मतलबी है न हम इंसान, किसी की परेशानी किसी के दुःख से हमे क्या लेना देना, हमको मतलब है तो सिर्फ अपने आप से और कभी-कभी अपने परिवार से भी... पर आज हम अवश्य यह नहीं कह सकते की हमको अपने परिवार की भी उतनी ही चिंता है जितनी अपनी, क्यों, क्यूंकि हम खुद ही नहीं जानते हम क्या कर रहे हैं क्यों कर रहे हैं किसके लिए कर रहे हैं ... जिस समाज में हम रह रहे है उस समाज में और भी लोग है जो अलग-अलग स्थिति में रह रहे है, पर हम यकीनन यह कह सकते हैं कि भाई जो हम कर रहे हैं अपने लिए कर रहे हैं और कयी लोगों का कहना तो यह है पहले हम अपने लिए तो कर ले, अपने परिवार के लिए तो कर ले फिर दूसरे के लिए सोच लेंगे, यह कह कर सब कन्नी काट जाते है, जिस स्थान पर जल रहता है, हंस वही रहते हैं, हंस उस स्थान को तुरंत ही छोड़ देते हैं जहां पानी नहीं होता है, हमें हंसों के समान स्वभाव वाला नहीं होना चाहिए।
                       आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें कभी भी अपने मित्रों और रिश्तेदारों का साथ नहीं छोडऩा चाहिए, जिस प्रकार हंस सूखे तालाब को तुरंत छोड़ देते हैं, इंसान का स्वभाव वैसा नहीं होना चाहिए, यदि तालाब में पानी न हो तो हंस उस स्थान को भी तुरंत छोड़ देते हैं जहां वे वर्षों से रह रहे हैं, बारिश से तालाब में जल भरने के बाद हंस वापस उस स्थान पर आ जाते हैं, हमें इस प्रकार का स्वभाव नहीं रखना चाहिए, हमें मित्रों और रिश्तेदारों का सुख-दुख, हर परिस्थिति में साथ देना चाहिए, एक बार जिससे संबंध बनाए उससे हमेशा निभाना चाहिए, हंस के समान स्वार्थी स्वभाव नहीं होना चाहिए।

              हम सभ्य और विकसित होने का दावा तो करते हैं मगर किसी के दुख या परेशानी में शामिल होने के लिये हमारे पास समय नहीं है, हम आज जिस आधुनिक समाज में रह रहे हैं वह हमें अपने अधिकारों के बारे में तो हमें बताता है मगर हमें अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक नहीं करता जैसे कि हमारे पूर्वजों ने जो पेड़ लगाये थे उन पेड़ों से हमें शुद्ध और ताजी हवा मिलती है मीठे फल मिलते हैं और ठंडी छांव मिलती है, हम लोग अपने पूर्वजों के लगाये हुये पेड़ तो अपनी जरूरतों के लिये काट देते हैं मगर अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये पेड़ नहीं लगाते जिसकी वजह से आने वाली पीढि़यों को शुद्ध और ताजी हवा मीठे फल और ठंडी छांव कैसे मिल पायेगी इसके बारे में हम नहीं सोचते, आज हमें जरूरत है ऐसी पढ़ाई की जो हमें अपने अधिकारों के बारे में तो पढ़ाये ही और साथ ही हमे अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक भी बनाये जिससे हम पढ़ें-लिखें और साथ में एक अच्छे इंसान भी बन सकें।

               यह हमारा समाज है कि जो हमारे लिए आगे बढने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है, अगर समाज का डर न हो तो इंसान इंसान नहीं रह सकता, हम तो खुद कैसे भी अपना जीवन बिता लेंगे, फिर जिंदगी के दरिया में कहीं न कहीं किनारे पर लग कर अपना जीवन व्यतीत कर ही लेंगे, अब क्योंकि हम इस समाज के महत्वपूर्ण अंश है, इसलिए हम हर पल समाज के आगोश में रहते है, समाज की बंदिशों का डर रहता है कि हम किसी भी काम को करने से पहले बहुत बार सोचने को मजबूर हो जाते है, अगर हमारी वजह से कोई गलत काम हो गया तो, और यही छोटी-छोटी बातें हमको कुछ सकारात्मक व सार्थक करने के लिए प्रेरित करती है बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक के लंबे सफर में सबसे बेशकीमती युवावस्था का समय हमारी जिंदगी का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है, और इसी पडाव पर हमको बचपन की सुनहरों यादों के साथ सपनों को साकार करने प्रयास करना चाहिए, ताकि हम वृद्धावस्था में अपने समाज में गर्व से कह सके कि देखो और समझो हमने जिंदगी के दरिया में मजबूत व दृढ इच्छा-शक्ति के बल पर तैर कर अपने लिए वह मुकाम हासिल किए है, जो कामयाबी के शिखर बन गए, अगर हमने युवावस्था में समाज की परवाह नहीं की, तो ऐसा हो सकता है कि वृद्धावस्था में समाज हमारा साथ छोड दे और हम अकेले रह जाए, जिंदगी के आखिरी मोड पर, इसलिए जरूरी हो जाता है कि हमको अपना कल को संवारने के लिए आज समाज को सम्मान देकर और उससे प्रेरणा लेते हुए आगे बढने की कोशिश की जाए।

                हमारा समाज तो हम सब के लिए एक अच्‍छी और साफ़-सुथरी जिन्दगी जीने का मुख्य आधार है, अगर हम समाज को दरकिनार करेंगे तो हमारा जीवन एक नरक की तरह बन जाता है, निजी जीवन जीने के लिए आज कल पैसा ही सब कुछ है, पर समाज में भी रहना जरुरी है, जीवन में आदमी महान कब होता है जब इज्जत-मान-मर्यादा हर आदमी का अपना परिवार होता है, इसके लिए समाज बहुत जरुरी है, अपने कल संवारने के लिए आज समाज को सम्मान देकर और उससे प्रेरणा लेते हुए आगे बढने की कोशिश की जाए।

                हमें अपने समाज से बुराई को हटाना होगा, जब तक हम समाज में व्याप्त बुराई को हटाने में कोई सहयोग नहीं करते हैं तब तक हम उन्‍नति नही कर सकते, कितने लोग सोचते व कहते हैं कि एक हमारे चाहने से क्या होगा ..... पूरी दुनियाँ ऐसी हैं तो क्या एक सिर्फ हमारे सुधरने से दुनियाँ सुधर जायेगी ... इस तरह से लोग कई बात कहते हैं, पर हमें सोचना व समझना चाहिए कि हम और आप जैसे व्यक्तियों से ही यह समाज बना है, तब फिर हमारे व आपके सुधरने से यह समाज क्यों न सुधरेगा, याद रखें हमारे-आपके सहयोग से ही इस समाज की उन्नति संभव है, हम सभी से यह आह्वान करना चाहते है कि अपने में सुधार लाते हुए समाज को सुधारने में अपना योगदान दें।
समाज के समन्दर की मैं एक बूँद हूँ, और मेरा प्रयास वैचारिक परमाणुओं को संग्रहित कर सागर की निर्मलता को बनाए रखना।


             बन्धुओं में हम इस सन्देश को आप लोगो तक पहुंचा रहे है, और हमें पूर्ण विष्वास है आप समाज बन्धु इस सन्देश को न केवल दिल से पढोगे बल्कि
इस हकीकत को महसुस भी करोगे।

संकलनकर्ता - जेताराम खोभला 98673 25011
प्रकाषक  -  महेन्द्र आल 9610969896