बुधवार, 19 मार्च 2014

Choti si hai zindagi has ke jiyo,
Bhula ke gam saare sar utha ke jiyo,
Udaasi mein kya rakha hai muskura ke jiyo,
Apne liye na sahi apno ke liye jiyo…
                         Written by - M.P.Dewasi

Kabhi dil ki kamzori bankar reh jati he,
Kabhi waqt ki majburi bankar reh jati he,
Ye dosti wo pani he, Jitna bhi piyo pyas adhuri reh jati he…

Written by - M.P.Dewasi
Rishte khoon ke nahi hote,
Rishte ehsas ke hote hai,
Agar ehsas ho to ajnabi bhi apne,
or agar ehsas na ho to apne bhi ajnabi hote hai…
Written by - M.P.Dewasi


शनिवार, 15 मार्च 2014

Kaash aasoun ke saath yaadein beh jati,
kaash ye khamosi sab kuch keh jati,
kaash kismat tumne likhi hoti to, 
shayad meri kismat me pyar ki kami na rah jati…

Bahut tamanna thi, pyar mein aashiyan banane ki,
Bana chuke to lag gayi Nazar zammane ki.
Usi ka karz hai, jo aaj hai aankhon mein aansoo,
Saza mili hai humein muskurane ki.....
Written by :- M.P.Dewasi



Mahendra P Dewasi

Father's name    :-      Prabhu Ram Dewasi

Address            :-      V/P. - Jalera kalla, Tah.- Raniwara, Dist.- Jalore (Raj.)

Mobile no.        :-      +91-9587123207, +91-9610969896

E-mail id           :-       mahendradewasi07@gmail.com        

M.P. Dewasi with International Sant Shree Kriparam Ji Maharaj at Deesa, Gujrat.



हमारा इतिहास


हमारे पुर्वजों की माने तो सर्वप्रथम जैसलमेर जिले में निवास करते थे। हमारे को रेबारी जाति के नाम से जाना जाता है। हम रेबारी जाति में उपजाति आल एवं नख भाटी है। हमारे पुर्वजों का व्यावसाय पषुपालन करना था। वे ऊँट, बकरी, भेड़ व गाय चराकर अपनी आजिविका चलाते थे। वहीं पषुओं को चराने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे इसलिए हमें घुंमतु जाति के नाम से भी जाना था। पशुओं से दुध व ऊन प्राप्त होती थी, उसी से गुजारा चलाते थे। हमारे पुर्वजों को जैसे ही पानी व चारे की व्यवस्था दिखाई देती थी उसी ओर अपने पशुओं को लेकर आगे निकलते थे। इस प्रकार हमारे पुर्वज जैसलमेर से बाड़मेर होते हुए धीरे-धीरे जालोर जिले के सांचैर पहुंचे। वहां से घुमते-घुमते पांचला, दुगावा, लाछीवाड़ होते हुए रानीवाड़ा तहसील के हर्षवाड़ा आए, कुछ दिन वहां रूककर सांतरू आ गए, सांतरू से पशुओं को चराते-चराते जालेरा कलां आ पहुंचे। यहां पर पानी व चारें की अच्छी व्यवस्था मिलने के कारण स्थायी रहना शुरू कर दिया। बड़गांव ठिकाना के ठाकुर ने जालेरा कलां पहुंच कर हमारे पुर्वजों को आष्वासन दिया कि आप अपने मवेषी चराओं एवं जितनी जमीन काष्त कर सकते हो करो और कोई तकलीफ या फिक्र हो तो हमें बताना, हम आपकी मदद करेगें। तब से लेकर हम आज दिन तक पीढ़ी दर पीढ़ी यहां पर रह रहे है। अब हमारी इस पीढ़ी में तो खुषी है क्योंकि लोकतंत्र में हमें पढ़ाई-लिखाई एवं अन्य संसाधन प्राप्त है। अब हम स्वतंत्र होकर अपने परिवार के साथ रह सकते है। वहीं इस नयी पीढ़ी ने पुर्वजों का व्यावसाय छोड़कर खेती, व्यावसाय करना शुरू कर दिया है।

प्रेषक:- महेन्द्र देवासी जालेरा कलां 9610969896